ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १७६
अरतिः जन संसदि ।। (अध्याय १३ - श्लोक १०)
அரதிஹ் ஜன ஸம்ஸதி ... (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 10)
Aratih Jana Samsadi .. (Chapter 13 - Shloka 10)
अर्थ : जन समूह में अरुचि ।।
बाहर रास्ते पर कोई ध्वनि सुनाई दिया तो तुरन्त दौड़कर देखने की जिज्ञासा , कोई जुलूस , शव यात्रा या वर-वधु यात्रा जाए तो रुककर उसे देखने की इच्छा , आवश्यकता कुछ नहीं परन्तु ऐसे ही (अहैतुक) शॉपिंग के लिए निकलना , कहीं झगमग दीप सजावट हो तो उसका कारण पता लगाने की चाह , चौक पर , ओटा पर , वट वृक्ष के नीचे बैठी गोष्टी में बैठकर निरर्थक गपशप में समय गँवाना , आस पड़ोस के निजी विषयों , घर की बातों में रुचि दिखाना , "सनसनी खेज खबरें .. गरमा गरम समाचार" कहकर बेचीं जाने वाली पत्रिका तत्क्षण खरीद लेने की उत्सुकता , रास्ते पर जमी भीड़ में झाँक देखने की इच्छा , टीवी चैनलों पर चलने वाल व्यर्थ वाद विवादों को देशभक्ति या सामान्य ज्ञान के नाम देकर चाव से देखना , प्रातःकाल का सक्रियता और उत्सुकता के समय को दैनिक समाचार पढ़ने में आलस्य में गँवाना .. आदि आदि रतिः जन संसदी है । इनके विपरीत हैं अरतिः जन संसदी ।
लोक सभा , विधान सभा आदि संसद कहे जाते हैं । विवाद मंच , प्रवचन मंच हैं ये । भाषण ही वहाँ उद्योग है और गला ही मूलधन । गाँव के बारे में , देश के बारे में , नियम बनाना और उनके क्रियान्वन के विषय में चर्चा करना , यही वहाँ का कर्तव्य । अर्थपूर्ण प्रवचन , देश हित में प्रवचन , निरर्थक गपशप , खंडन , शोर शराबा , व्यंग , एक दूसरे को नीचे दिखाने के प्रयत्न , गाली गलोच .. सांसद के स्वभावानुकूल विविध प्रकार के ये प्रवचन । यह तो उनका व्यवसाय है । परन्तु वहाँ क्या बोला गया , किसने क्या बोला यह जानना हमारे लिए , विशेषतः साधकों के लिए अनावश्यक है । इसी प्रकार गली गली में चलने वाले सांसदों में अरुचि यही शोधक से अपेक्षित है । इनमे रूचि उसके लिए अनुपयोगी है ।
इस रूचि को बढ़ावा देकर , जनों को आकर्षित कर , भीड़ एकत्रित कर , रूपये देखने के उद्योग कई हैं । रास्ते पर सांप - नेवले की लड़ाई दिखाने वाले से समाचार पत्र , टीवी चैनल तक । नेवला - सर्प की लड़ाई रचाने वाला रास्ते पर छोटे भीड़ एकत्रित करता है और चिल्लर में पैसे देखता है । उस के लिए अपना वाक् प्रभाव का उपयोग करता है । समाचार पत्र नग्न चित्र , पुरस्कार , चटपटी समाचार , आदि मिलाकर अपना सर्कुलेशन बढ़ाते हैं और लाखों में रूपया देखते हैं । टीवी चैनल इन्हीं विषयों और चकमकाकर करोड़ों में रूपया देखते हैं । आध्यात्मिक साधकों को यह रूचि अनावश्यक और हानिकारक हैं ।
अन्यों का कल्याण भाव को केंद्र बनाकर तदनुरूप अन्यों के विषय में रूचि लेना , रिश्ता , नाता सुदृढ़ बनाने हेतु जितना आवश्यक उतना ही बोलना , लोकहित , सेवा में लगो तो उस के अनुरूप समाचार जानने का प्रयत्न , खरीदना क्या है यह सुनिश्चित कर बाजार या मॉल जाना , किसे और क्यों मिलना है यह स्पष्ट निश्चित कर घर के बाहर निकलना , जानना क्या है इसकी स्पष्ट कल्पना रखकर उस हेतु से योग्य प्रवचन कार्यक्रमों में भाग लेना , या लाइब्रेरी में जाना या टीवी और इंटरनेट खोलना , समय के विषय में प्रज्ञा , "बस .. यूँ ही" इस शब्द को जीवन से हटा देना .. आदि साधकों के भलाई में है ।
लोक सभा , विधान सभा आदि संसद कहे जाते हैं । विवाद मंच , प्रवचन मंच हैं ये । भाषण ही वहाँ उद्योग है और गला ही मूलधन । गाँव के बारे में , देश के बारे में , नियम बनाना और उनके क्रियान्वन के विषय में चर्चा करना , यही वहाँ का कर्तव्य । अर्थपूर्ण प्रवचन , देश हित में प्रवचन , निरर्थक गपशप , खंडन , शोर शराबा , व्यंग , एक दूसरे को नीचे दिखाने के प्रयत्न , गाली गलोच .. सांसद के स्वभावानुकूल विविध प्रकार के ये प्रवचन । यह तो उनका व्यवसाय है । परन्तु वहाँ क्या बोला गया , किसने क्या बोला यह जानना हमारे लिए , विशेषतः साधकों के लिए अनावश्यक है । इसी प्रकार गली गली में चलने वाले सांसदों में अरुचि यही शोधक से अपेक्षित है । इनमे रूचि उसके लिए अनुपयोगी है ।
इस रूचि को बढ़ावा देकर , जनों को आकर्षित कर , भीड़ एकत्रित कर , रूपये देखने के उद्योग कई हैं । रास्ते पर सांप - नेवले की लड़ाई दिखाने वाले से समाचार पत्र , टीवी चैनल तक । नेवला - सर्प की लड़ाई रचाने वाला रास्ते पर छोटे भीड़ एकत्रित करता है और चिल्लर में पैसे देखता है । उस के लिए अपना वाक् प्रभाव का उपयोग करता है । समाचार पत्र नग्न चित्र , पुरस्कार , चटपटी समाचार , आदि मिलाकर अपना सर्कुलेशन बढ़ाते हैं और लाखों में रूपया देखते हैं । टीवी चैनल इन्हीं विषयों और चकमकाकर करोड़ों में रूपया देखते हैं । आध्यात्मिक साधकों को यह रूचि अनावश्यक और हानिकारक हैं ।
अन्यों का कल्याण भाव को केंद्र बनाकर तदनुरूप अन्यों के विषय में रूचि लेना , रिश्ता , नाता सुदृढ़ बनाने हेतु जितना आवश्यक उतना ही बोलना , लोकहित , सेवा में लगो तो उस के अनुरूप समाचार जानने का प्रयत्न , खरीदना क्या है यह सुनिश्चित कर बाजार या मॉल जाना , किसे और क्यों मिलना है यह स्पष्ट निश्चित कर घर के बाहर निकलना , जानना क्या है इसकी स्पष्ट कल्पना रखकर उस हेतु से योग्य प्रवचन कार्यक्रमों में भाग लेना , या लाइब्रेरी में जाना या टीवी और इंटरनेट खोलना , समय के विषय में प्रज्ञा , "बस .. यूँ ही" इस शब्द को जीवन से हटा देना .. आदि साधकों के भलाई में है ।
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