ॐ
गीता की कुछ शब्दावली -१७७
अध्यात्मज्ञाननित्यत्त्वम् ... (अध्याय १३ - श्लोक ११)
அத்யாத்ம க்ஞான நித்யத்வம் .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 11)
Adhyaatma Gyaana Nityattvam .. (Chapter 13 - Shlokam 11)
अर्थ : अध्यात्म ज्ञान में नित्य निरन्तर रहना ..
सदैव अध्यात्म चिन्तन में तल्लीन रहे तो संसारी चिन्तन कब और कैसे हो सकते हैं ? संसारी चिन्तन नहीं रहा तो संसारी कार्य कैसे हो ? आध्यात्मिक चिंतन में रहते हुए , क्या संसारी कार्य सम्भव है ??
श्री नारद भक्ति सूत्र में भक्ति की व्याख्या करते हुए श्री नारद कहते हैं , "कथा सुनना भक्ति है ? मंदिरों में दर्शन हेतु जाना ही भक्ति है ?? ना । गोकुल बृन्दावन की गोपियाँ जैसे जीना ही भक्ति है । वे भी अन्यों की तरह सभी साधारण कार्यों में लगी रही । बाहरी दृश्य में कोई अन्तर नहीं । परन्तु गोपियाँ कार्य श्री कृष्ण के लिए करती ।
कार्यों को स्व के लिए करना , 'मैं' ही कर रहा हूँ इस कर्ता भाव से करना , लौकिक है । उन्हीं कार्यों को उसके लिए करना आध्यात्मिक है । लौकिक भाव निरुत्साहित करता है । थकान उत्पन्न करता है । आध्यात्मिक भाव आनन्द प्रदान करता है ।
आध्यात्मिक चिन्तन में मग्न रहकर संसारी कार्यों को किया तो सभी कार्य आध्यात्मिक साधना ही हो जाते हैं । विशेष आध्यात्मिक प्रयत्नों की आवश्यकता नहीं है । वैसे विशेष प्रयत्न किया भी तो मन उसमे सहज लीं हो जाता है । संसारी चिन्तन ऐसे प्रयत्न को बिगाड़ नहीं सकते । ठीक विपरीत , जब संसारी चिन्तन में डूबे मनःस्थिति में संसारी कार्यों को कर , तत्पश्चात विशेष आध्यात्मिक प्रयत्न किये तो संसारी विचार ऐसे प्रयत्नों को डगमगा देते हैं ।
संसारी चिन्तन को मिटा देना कइयों के लिये बड़ा कठिन है । इसी कारण उन्हें लगता है की संसारी कार्यो को कर लेने के पश्चात , संसारी जीवन को समाप्त कर , जीवन के अन्तिम चरण में आध्यात्मिक प्रयास हो सकते हैं । संसारी कार्यों से मुक्त होने के बाद भी संसारी चिन्तन से मुक्ति पाना इनके लिये असम्भव है । जीवन के अन्तिम क्षण पर्यन्त ये संसारी चिंतन में डूबे रहते हैं । बंधे रहते हैं ।
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