ॐ
श्री गुरु पूर्णिमा
आज श्री गुरु पूर्णिमा या श्री व्यास पूर्णिमा थी । आषाढ महिने की पूर्णिमा श्री गुरू के लिये समर्पित । गुरू यह शिक्षक नहीं । गुरू यह वक्ता या प्रवचनकर्ता नहीं । गुरू यह निर्देशक नहीं । गुरू यह प्रशिक्षक नहीं । परन्तु इनमें से कोई भी गुरू बन सकता है । गुरू इन सब से परे है ।
शब्द "गुरू" गु - रू । गु है अन्धकार । रू का अर्थ है नाश । तो गुरू वह है जो अन्धकार का नाश करता है । भीतर का अन्धकार ।
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर: । गुरू यह सृजनकर्ता ब्रह्मा हे , पालनकर्ता विष्णु और प्रलयकर्ता शिव है । गुरु:साक्षात परब्रह्म । गुरू परब्रह्म परमात्मा है । याने वह जो कुछ करता नहीं । परन्तु जो प्रत्येक कृति का कारण है ।
शब्द "गुरू" गु - रू । गु है अन्धकार । रू का अर्थ है नाश । तो गुरू वह है जो अन्धकार का नाश करता है । भीतर का अन्धकार ।
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर: । गुरू यह सृजनकर्ता ब्रह्मा हे , पालनकर्ता विष्णु और प्रलयकर्ता शिव है । गुरु:साक्षात परब्रह्म । गुरू परब्रह्म परमात्मा है । याने वह जो कुछ करता नहीं । परन्तु जो प्रत्येक कृति का कारण है ।
आज श्री गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष मे आयोजित शिक्षक सेमिनार मे चर्चित बिन्दुओं मे कुछ ।
गुरू शिष्य सम्बन्ध यह स्नेह और भक्ति पर आधारित है । गुरू के मन मे शिष्य के प्रति असीम स्नेह और शिष्य के मन मे गुरू के प्रति अचल भक्ति ।
गुरू यह विशेष है क्यूँ की शिष्य से उसका कोई रक्त सम्बन्ध नहीं । उससे प्रति उपकार लवलेश अपेक्षा भी नहीं । फिर भी उसके मनमे शिष्य के प्रति स्नेह भाव है । असीम स्नेह । निरपेक्ष स्नेह भाव । शुद्ध स्नेह भाव ।
गुरू अपने पास जो कुछ है , शिष्य को दे जाता है । गुरू शिष्य को अपने समान , स्वयम् के स्तर तक ऊपर उठाता है । उसके मनमे ईर्ष्या नहीं अपितु हर्ष भर जाता है जब वह अपने शिष्य को अपने से ऊपर , अपने से उन्नत स्तर पर पहुँचते देखता है ।
उपदेश यह उप -- देश है । उप यह समीप है और देश यह बोलना या दिखाना या समझाना है । याने समीप बैठकर बोलना । गुरू शिष्य के समीप है । अतः उसका चारित्र्य और व्यवहार शिष्य के दृष्टी के पास रहता है ।
श्रीमद्भगवद्गीता मे श्री कृष्ण शिष्य से तीन अपेक्षा करते हैं । प्रणिपाद .. नमस्कार यानी विनम्रता । परिप्रश्न याने प्रश्न पूँछना और सन्देह निवृत्त करना । और सेवा , गुरू की सेवा करना ।
आज हमारे श्री काँची शङ्कर विद्यालय मे श्री गुरू पूर्णिमा के पर्व पर तीन कार्यक्रम हुए । प्रातः बच्चों ने श्री गुरू पूजन किया । वेद व्यास , आद्य शङ्कराचार्य और काञ्ची शंकर मठ के आचार्य़ को पुष्प अर्पित कर नमस्कार किया । तत्पश्चात विद्यालय का पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ । श्री के वी बालकृष्णन - स्टेट बँक के सेवा निवृत्त प्रबन्धक द्वारा पुस्तक , पुस्तकालय और अपना जीवन इस विषय को सरल सुन्दर ढंग प्रस्तुत किया । सायम् शिक्षकों के लिये , एक सेमिनार आयोजित था जिसमे अपने शिक्षक , आसपास के विद्यालयों के शिक्षक और हमारे बच्चों के माता पिता और पालक गण ने भाग लिया । सभी ने अपना विषय उत्तम रीति प्रस्तुत किया विशेषतः श्री रंगा मेट्रिकुलेशन का शिक्षक श्री मुत्तुकृष्णन , वेद पाठशाला के आजार्य श्री सुब्रह्मणियन और हमारे विद्यार्थी की माँ श्रीमति योगाम्बाल ने विषय का उत्तम प्रतिपादन किया । अनेक विद्यार्थियों के लिये और कुछ शिक्षकों के लिये भी ऐसा कार्यक्रम का जीवन मे प्रथम अनुभव था श्री गुरू पूर्णिमा और गुरु पूजन का यह कार्यक्रम । सही अर्थ मे आज का दिन यानी श्री व्यास पूर्णिमा ही शिक्षक दिवस के रूप मे मनाया जाना चाहिये ।
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