ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८५
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्त: । (अध्याय १३ - श्लोक २७)
ஸமம் ஸர்வேஷு பூதேஷு திஷ்டந்தம் .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 27)
Samam Sarveshu Bhooteshu Tishthantam .. (Chapter 13 - Shlokam 27)
अर्थ : सम्पूर्ण प्राणियों में समरूपसे स्थित है ।
श्री परमात्मन सर्व जीवों में स्थित हैं । सम रूप से स्थित हैं । किसी जीव में कम मात्रा में और किसी अन्य में अधिक नहीं । किसी जीव में वीर्यवान उपस्थिति और किसी अन्य में बलहीन नहीं । किसी जीव में मन्द स्थित और अन्य किसी में प्रकाशमान नहीं । वह तो सम रुप में स्थित है । सर्व जीवों के विविध आकार प्रकार के शरीर में वह नित्य स्थित है । उन शरीरों को स्व स्व आकार प्रकार के अनुसार क्षमता प्रदान करता है । जीने के लिये आवश्यक प्रयत्न और संघर्ष की क्षमता प्रदान करता है ।
हम ही अज्ञान वश होकर जीवों को ऊंचे और नीचे श्रेणी में बाँटते हैं । उपयोगी जीव और अनुपयोगी जीव बताकर भेद करते हैं । प्राणी पक्षी कीड़े ही नहीं , हम तो सहमनुष्य को भी अल्प और महत के ठप्पे लगा देते हैं । मनुष्य निर्मित कई व्यवस्था इसी आधार पर चलते हैं । इन व्यवस्थाओं में कुछ जीव की मृत्यु निष्प्रभाव और अन्य कुछ जीव किसी भी कीमत पर रक्षित किये जाने योग्य हैं । परन्तु सत्य यह है की सम्पूर्ण जीवों में श्री परमात्मा सम रूप से स्थित हैं ।
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