ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८२
ध्यानेन साङ्ख्येन योगेन कर्मयोगेन ... (अध्याय १३ - श्लोक २४)
த்யானேன ஸாங்க்யேன யோகேன கர்மயோகேன . (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 24)
Dhyaanena Saankhyena Yogena KarmaYogena .. (Chapter 13 - Shlokam 24)अर्थ : ध्यानयोग के द्वारा , साङ्ख्ययोग के द्वारा या कर्मयोग के द्वारा ...
ये अनेक मार्ग हैं । योग की दिशा में अनेक मार्ग हैं । श्री परम से ऐक्य के मार्ग हैं । ध्यान , साङ्ख्य और कर्म योग आदि अनेक मार्गों में मेरे भक्त मेरी प्राप्ति का ध्येय लेकर चले हैं , यह कहना है श्री कृष्ण का ।
ये सभी मार्ग श्री गीता में चर्चित हैं । ध्यान मार्ग छटा अध्याय में विस्तार से चर्चित है । ध्यान के लिए अनुकूल बाह्य उपकरण एवं वातावरण , शरीर एवं मन की स्थिति आदि वर्णित हैं । ध्यान का स्थैर्य बढ़ाने वाला भोजन की भी चर्चा है । इसी अध्याय में मन को नियंत्रित करने का रहस्य भी बताते हैं । मार्ग के अनुयायी भ्रष्ट हो जायें और मार्ग से हट जायें तो क्या होगा ? भयभीत भक्त को आश्वस्त करते हुए श्री कृष्ण कहते हैं की सच्चा प्रयत्न अवश्य फलित होंगे , इस जन्म में नहीं तो आगामी जन्म में ।
ज्ञान का महत्त्व गीता में कई स्थानों में बताया गया है । परन्तु दूसरा अध्याय प्रमुख रूप से ज्ञान या साङ्ख्य की चर्चा करती है । देह और दहिन अथवा देह और उस देह का धारण करने वाला इस तथ्य के आधार पर सच्चा मैं और कल्पित मैं विस्तार से समझाया गया है । ज्ञान मार्ग में सहायक स्थिर बुद्धि , ज्ञान ग्रहण करने में सहायक स्थित प्रज्ञ का विस्तृत वर्णन भी इसी अध्याय में किये गया है । श्री रमण महर्षि इस मार्ग के अनुयायी रहे । "मैं कौन हूँ ?" इस प्रश्न के साथ इस मार्ग का प्रवास आरम्भ करने का सुझाव देते हैं श्री रमण महर्षि ।
कर्म योग तीसरे अध्याय में चर्चित है । कर्मों में मग्न रहना ही कर्म योग नहीं । कर्म और कर्मफल के प्रति राग मिटाकर कर्मों में लगना ही कर्म योग है । केवल स्थूल बाहरी कर्म ही कर्म नहीं अपितु मन में चलने वाले सूक्ष्म कर्म भी कर्म हैं । अध्याय के अन्त में श्री कृष्ण 'मैं' की कल्पना साझाते हैं । स्थूल शरीर से सूक्ष्म अति सूक्ष्म शरीरों तक और इन सब से परे आत्मा का वर्णन करते हैं ।
श्री कृष्ण विभिन्न मार्गों की चर्चा कर रहे हैं । परन्तु वे किसी भी एक मार्ग को विशेष या सही कह नहीं रहे । कुछ भक्त इस मार्ग पर चले हैं । कुछ अन्य भक्त अन्य मार्ग पर चले हैं । सभी मेरे ओर आने के प्रयत्न में लगे हैं । मार्ग भिन्न हैं । परन्तु सभी मार्ग समान हैं । सभी मार्ग सही हैं । यह विचार यहाँ पुनः एक बार प्रतिष्ठित किया जा रहा है श्री कृष्ण के द्वारा ।
ये सभी मार्ग श्री गीता में चर्चित हैं । ध्यान मार्ग छटा अध्याय में विस्तार से चर्चित है । ध्यान के लिए अनुकूल बाह्य उपकरण एवं वातावरण , शरीर एवं मन की स्थिति आदि वर्णित हैं । ध्यान का स्थैर्य बढ़ाने वाला भोजन की भी चर्चा है । इसी अध्याय में मन को नियंत्रित करने का रहस्य भी बताते हैं । मार्ग के अनुयायी भ्रष्ट हो जायें और मार्ग से हट जायें तो क्या होगा ? भयभीत भक्त को आश्वस्त करते हुए श्री कृष्ण कहते हैं की सच्चा प्रयत्न अवश्य फलित होंगे , इस जन्म में नहीं तो आगामी जन्म में ।
ज्ञान का महत्त्व गीता में कई स्थानों में बताया गया है । परन्तु दूसरा अध्याय प्रमुख रूप से ज्ञान या साङ्ख्य की चर्चा करती है । देह और दहिन अथवा देह और उस देह का धारण करने वाला इस तथ्य के आधार पर सच्चा मैं और कल्पित मैं विस्तार से समझाया गया है । ज्ञान मार्ग में सहायक स्थिर बुद्धि , ज्ञान ग्रहण करने में सहायक स्थित प्रज्ञ का विस्तृत वर्णन भी इसी अध्याय में किये गया है । श्री रमण महर्षि इस मार्ग के अनुयायी रहे । "मैं कौन हूँ ?" इस प्रश्न के साथ इस मार्ग का प्रवास आरम्भ करने का सुझाव देते हैं श्री रमण महर्षि ।
कर्म योग तीसरे अध्याय में चर्चित है । कर्मों में मग्न रहना ही कर्म योग नहीं । कर्म और कर्मफल के प्रति राग मिटाकर कर्मों में लगना ही कर्म योग है । केवल स्थूल बाहरी कर्म ही कर्म नहीं अपितु मन में चलने वाले सूक्ष्म कर्म भी कर्म हैं । अध्याय के अन्त में श्री कृष्ण 'मैं' की कल्पना साझाते हैं । स्थूल शरीर से सूक्ष्म अति सूक्ष्म शरीरों तक और इन सब से परे आत्मा का वर्णन करते हैं ।
श्री कृष्ण विभिन्न मार्गों की चर्चा कर रहे हैं । परन्तु वे किसी भी एक मार्ग को विशेष या सही कह नहीं रहे । कुछ भक्त इस मार्ग पर चले हैं । कुछ अन्य भक्त अन्य मार्ग पर चले हैं । सभी मेरे ओर आने के प्रयत्न में लगे हैं । मार्ग भिन्न हैं । परन्तु सभी मार्ग समान हैं । सभी मार्ग सही हैं । यह विचार यहाँ पुनः एक बार प्रतिष्ठित किया जा रहा है श्री कृष्ण के द्वारा ।
Comments
Post a Comment