ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८३
श्रुतिपरायणाः .. (अध्याय १३ - श्लोक २५)
ஶ்ருதி பராயணாஹ .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 25)
Shruthi Paraayanaah .. (Chapter 13 - Shlokam 25)
अर्थ : सुनने के अनुसार आचरण करने वाले मनुष्य ।
जो सुनी जाती है वह श्रुती । परायण याने उसके अनुरूप .. उसी का चिन्तन .. उसे ग्रहण करना .. उसको जीवन में उतारना .. जो सुनी उसके अनुरूप व्यवहार .. जो सुनी उसे मन में ढालना .. जो सुनी उसे जीवन में उतारना .. श्रुति परायणाः के ये अर्थ हो सकते हैं ।
जब हम संसार में विचरते हैं , हमारे कान खुले रहते हैं । अपने चारों ओर उठने वाले शब्द कानों में प्रवेश करते रहते हैं । यह रोका नहीं जा सकता । कानों को हम ताला लगा नहीं सकते । संसार में अरुचि , मनको कानों के पीछे अनुपस्थित करना . संसारी शब्दों का कानों में प्रवेश रोकने का यह एक ही उपाय है ।
श्रुति परायणाः .. श्रुत शब्दों का चिन्तन मनन .. श्रुत शब्दों को आचरण में लाने का प्रयत्न करना .. इसका अर्थ कोई भी ऐरगैर व्यक्ति के शब्दों को सुनना और चिंतन करना नहीं । श्रवण या सुनना यह एक कार्य है । इसके पीछे एक निर्णय है । "सुनने का निर्णय । क्या सुनना यह निर्णय । किसका सुनना यह निर्णय उससे उचित है । अपने मन में उपस्थित सन्देह और भ्रम , अपना स्वभाव , जीवन में अपने अनुभव इनके अनुरूप एक गुरु का शोध कर , उसकी सेवा कर , उसके चरणों में बैठकर उसके शब्दों को सुनना .. ये ही शब्द श्रुति हैं । इन्हीं शब्दों का चिंतन मनन और जीवन में प्रयोग परायण है ।
चिन्तन स्पष्ट हो तो , क्या पाना है इसका दृढ़ संकल्प हो तो किसी भी व्यक्ति के शब्द , कोई भी शब्द , प्राणी पक्षियों के शब्द भी श्रुति हो सकते हैं । परायण के लिए योग्य श्रुति हो सकते हैं । स्पष्टता न हो और किसी ऐरगैर के शब्दों को सुनकर जीवन में प्रयोग करने लगो तो मन में भ्रम , भ्रान्ति उठेंगे और जीवन दिशाहीन होगा ।
श्रुति शब्द वेद को सूचित करता है । (सुने हुए शब्द हैं । किसी व्यक्ति से लिखे हुए नहीं हैं । इसीलिए श्रुति कहे जाते हैं ।) श्रुति परायणाः का अर्थ यह भी हुआ की वेद के अनुरूप जीओ । वेद का अनुवर्तन करें । श्री कृष्ण इस सन्दर्भ में इसे भी (श्रुति परायण को) परमात्म प्राप्ति की दिशा में एक मार्ग बता रहे हैं । श्री परम के साथ ऐक्य के लिए एक उपाय सुझा रहे हैं ।
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