ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८८
तासां ब्रह्म महाद्योनिः अहं बीजप्रदः पिता .. (अध्याय १४ - श्लोक ४)
தாஸாம் ப்ரஹ்ம மஹத் யோனிஹி அஹம் பீஜஹ ப்ரதஹ பிதா .. (அத்யாயம் 14 - ஶ்லோகம் 4)
Taasaam Brahma MahadYonihi Aham BeejaPradah Pitaa .. (Chapter 14 - Shlokam 4)
अर्थ : उत्पत्ति होने वाले सभी शरीरों को गर्भ प्रदान करने वाली माता प्रकृति है । गर्भ को बीज प्रदान करने वाले श्री परमेश्वर पिता मैं हुँ ।
इस संसार में अपना जन्म कैसे होता है ?? माता के गर्भ में हम दस मास रहते हैं । वहीं अपने शरीर की सृष्टि और वर्धन होते हैं । अतः माता शरीर के सृजन के लिए गर्भ देने वाली है । उस से स्वीकारा भोजन उसके शरीर का रक्षण पोषण के लिये आवश्यक सत्त्वों का स्रोत है । उस के ऊपर गर्भ में बसा शिशु के शरीर का वर्धन भी उसी से होता है । परन्तु , शिशु उत्पत्ति के लिए कारण हैं पिता , जो उस गर्भ को बीज प्रदान करते हैं ।
यहाँ श्री कृष्ण द्वारा एक अद्भुत विषय कहा गया है । हम सभी के पिता श्री परमेश्वर ही हैं । अपने शरीर प्रकृति के पाँच महातत्त्व (महाभूत) के मिश्रण से बने हैं । अतः प्रकृति , जो शरीर के बनाने में कारण है , हमारी माता है । अपने शरीरों को चैतन्य देने वाले जीव हैं जो परम पुरुष का अंश है । (आत्मा निर्मल है । वह वासनाओं से बंधता है तो वह जीव कहलाता है । श्री परमेश्वर और पुरुष में जो अन्तर है , वही आत्मा और जीव में है । श्री परमात्मा को सृष्टि कर खेलने की इच्छा हुई तो अपने आप को पुरुष रूप में प्रकट कराते हैं । माया या प्रकृति की सृष्टि करते हैं और उसके संयोग में सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन करते हैं ।) इस प्रकार , श्री परमेश्वर ही हमारे पिता हुए । न केवल मनुष्य कुल के , श्री सम्पूर्ण जीवों के परम पिता हैं ।
स्वामी विवेकानन्द ख्रिस्ती पादरियों की सभा में बोलते हुये यूँ कहते हैं । "मनुष्य अमृत पुत्र है । श्री परमात्मा के पुत्र है । सभी जीव उसी के अंश हैं । मनुष्य को पाप का पुत्र कहना ही बड़ा पाप है । मनुष्य को पापी शब्द से सम्बोधन करना घोर पाप है । (ख्रिस्ती सम्प्रदाय मनुष्य को पाप का पुत्र मानता है ।)" स्वामी विवेकानन्द के शब्दों के लिए आधार यहाँ गीता में श्री कृष्ण के ये शब्द हैं । वेद भी मनुष्य को अमृत पुत्र कहता है । "अमृतस्य पुत्रोSहम" ।
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