ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८९
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृति सम्भवाः .. (अध्याय १४ - श्लोक ५)
ஸத்வம் ரஜஸ்தம இதி குணாஹ ப்ரக்ருதி ஸம்பவாஹ .. (அத்யாயம் 14 - ஶ்லோகம் 5)
Sattvam RajasTama Iti Gunaah Prakruti Sambhavaah .. (Chapter 14 - Shloka 5)
अर्थ : सत्त्व रजस और तमस ये तीन गुण प्रकृति से निर्मित हैं ।
सत्त्व , रजस और तमस ये त्रिगुण हैं । प्रकृति से उत्पन्न ये तीन गुण सर्वदूर प्रस्तुत हैं । ये तीन गुणों के सहस्रों प्रकार के मिश्रण निसर्ग में उपस्थित सहस्रों विविधता का कारण है । स्थावर जीव , प्राणी , पक्षी , कीट , मनुष्य आदि सभी जीव ये तीन गुणों के मिश्रण से बने हैं । यदि जीवों के स्थूल शरीर प्रकृति जन्य पांच तत्त्वों से घटित हैं , जीवों के सूक्ष्म शरीर , उनके गुण , उनकी मनो भूमिका ये तीन गुणों के मिश्रण से घटित हैं । त्रिगणों के जितने असंख्य मिश्रण सम्भव हैं उतने असंख्य मनो भूमिका इस संसार में सम्भव हैं ।
त्रिगुण का यह ज्ञान अपने श्रेष्ट ऋषियों का मानवता के लिये उत्तम योगदान है । विशेषतः मनोविज्ञान क्षेत्र में क्रान्तिकारी प्रगति सम्भव है ।
सभी जीवों में ये तीनों गुण स्थित हैं , मात्रा कम अधिक हो सकते हैं ।
त्रिगुण और उनके असंख्य मिश्रण केवल प्रकार हैं , भेद नहीं । इनमे किसी गुण ऊँचा या किसी अन्य गुण नीचा नहीं । और गुण जड़ प्रकृति के हैं । अतः आध्यात्मिक प्रयत्न एवं प्रगति में अनुपयोगी हैं । परम की दिशा में प्रयत्नक साधक इन तीन गुणों से ऊपर उठे और गुणातीत बने यही अपेक्षा ।
त्रिगुणों के विषय में जानते ही , इस विवरण को अपने आस पास विचरते मनुष्यों के गुण / चारित्र्य का आंकलन और मूल्यांक देने के प्रयास करने की उत्सुकता से बचें । यह विषय केवल आत्म विश्लेषण , आत्म परीक्षण और आत्मावलोकन के लिये प्रयोग करें यह विनन्ति ।
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