ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - १८१
प्रभविष्णु च भूतभर्तृ च ग्रसिष्णु .. (अध्याय १३ - श्लोक १६)
ப்ரபவிஷ்ணு ச பூதபர்த்ரு ச க்ரஸிஷ்ணு .. (அத்யாயம் 13 - ஶ்லோகம் 16)
Prabhavishnu Cha BhootaBhartru Cha Grasishnu .. (Chapter 13 - Shlokam 16)
अर्थ : सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करनेवाले , उन सभी का भरण पोषण करनेवाले और उनका संहार करनेवाले ।
सृष्टि में तीन प्रधान कार्य हैं । सृजन , परामर्श और नाश या विसर्जन । ये तीन कार्य संसार में सभी क्षेत्रों में अनिवार्य हैं । उद्योग क्षेत्र में उद्योगशाला का निर्माण , यंत्रों का निर्माण और उनकी सहायता से उत्पत्ति । उद्योगशाला का परामर्श , यंत्रों का परामर्श और निर्मित वस्तुओं को जो खरीद ले जाता है , उसके द्वारा उन वस्तुओं का परामर्श । उद्योग में निर्माण होने वाला कूड़ा , कचरा और कबाड़ का नाश , अनुपयोगी यंत्रों का विसर्जन , दोष सहित निर्मित वस्तुओं का नाश , तन्त्रज्ञान में प्रगति के कारण पुराने और अनुपयोगी हो जाने वाले यंत्रों का नाश । अपने घरों में भी ये ही तीन कार्य नित्य चलते रहते हैं । घर बनता है । उसका परामर्श होता है । कालबाह्य होने से उसका तोड़ ताड़ होकर पुनर्निर्माण होता है । घर के भीतर वस्तुओं को भी , दैनन्दिन भोजन , देव पूजा के लिए बनाया गया पुष्प हार , और अन्य सुविधा आदि को भी इन तीन प्रक्रिया का अनुभव अनिवार्य है । निसर्ग में भी ये ही तीन कार्य निरन्तर चलते हैं । अनेक बड़ी नदियाँ , समुद्र , पर्वत , नगर और महानगर , देश आदि काल प्रवाह में लुप्त और नष्ट हुए हैं ।
ये तीनों कार्य अति कठिन हैं । सृजन कठिन है । सृजन के लिए ज्ञान की आवश्यकता है । इसीलिए सृजनकर्ता ब्रह्मदेव की साथी ज्ञान स्वरूपी सरस्वती है । परामर्श भी कठिन है । नाश प्रकृति का नियम है । अतः परामर्श प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है । परामर्श के लिए आवश्यक है धन । इसीलिए पालनकर्ता श्री महाविष्णु की साथी है श्री की अधिदेवी श्री महालक्ष्मी है । विसर्जन या नाश भी अति कठिन है । आज के नवीन युग में नवीन तंत्रज्ञान से सृजित कम्प्युटर , मोबाईल , सेटेलाइट , प्लास्टिक आदि कई वस्तुओं का नाश आह्वान बनकर उभरा है । नाश के लिए बड़ी शक्ति की आवश्यकता है । इसीलिए प्रलयकर्ता श्री महादेव की साथी अम्बा शक्ति देवी है ।
श्री कृष्ण के अनुसार , "ये तीनों कार्य श्री परमात्मा के ही हैं" ।
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