ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २०१
असङ्ग शस्त्रेण दृढेन छित्वा .. (अध्याय १५ - श्लोक ३)
அஸங்க ஶஸ்த்ரேண த்ருடேன சித்வா .. (அத்யாயம் 15 - ஶ்லோகம் 3)
Asanga Shastrena Drushena Chittvaa .. (Chapter 15 - Shlokam 3)
अर्थ : दृढ असङ्ग इस शस्त्र से कांटे ..
संसार क्या है ?? संसार एक है की अनेक ?? सृष्टि तो एक ही संसार की है । परन्तु , प्रत्येक को मिलने वाला संसार भिन्न है । प्रत्येक को अपने अपने कर्म के अनरूप संसार मिलता है । उसके कर्म के परिणाम स्वरुप ही उसको संसार मिलता है । सुनने में यह हास्यास्पद लग सकता है । परन्तु चिन्तन छेड़ने से इसका तात्पर्य समझेगा ।
हमारा जन्म स्थान , परिवार और उसमे प्रचलित वातावरण , सामाजिक वातावरण , विद्यालय और महाविद्यालय जहाँ हमारा शिक्षण हुआ , हमें भाग्य होने वाले सन्दर्भ , मित्र वर्तुळ , प्रवास के अवसर , नगर और देश जहाँ हम जा सके , हमारे हाथ लगने वाले पुस्तक , अन्य कलाओं में क्षमता , हम को प्राप्त होने वाले अनुभव , अदृष्ट की सहायता , अदृष्ट शक्ति से चीन गए अवसर , आदि आदि । इनके ऊपर हमारे अन्दर उभरने वाले काम , क्रोध , द्वेष , ईर्ष्या , मन की ग्लानि , अहङ्कार के ताण्डव , आदि अनेक भावनायेँ । एक को जिस संसार का परिचय मिलता है , वह केवल उसी को मिलता है । एक जिस संसार को देखता है , उसे बस वह अकेला ही देखता है । और प्रत्येक का संसार उसके ही कर्मों की गाँठि है । उसके लिए विशेष । और किसी को वही संसार प्राप्त नहीं । किसी से संसार का वर्णन पूछिए । वह अपने जीवन का ही वर्णन करेगा । उसके लिए वही संसार है जो उसे प्राप्त हुआ । सृष्टित संसार एक ही है । परन्तु प्रत्येक को अपने कर्मों के अनुरूप प्राप्त संसार भिन्न भिन्न है ।
यह संसार आकर्षक है । बांधता है । कटु अनुभव हो तो द्वेष , कोप , क्रोध , बदले की भावना , आदि बांधते हैं । मीठे अनुभव मिले तो मान , अभिमान , इच्छा , लोभ , आदि बांधते हैं । इस बन्धन को काटना चाहिए । वैराग्य नामक शस्त्र से दृढ़तापूर्वक इस संसार को काटने सुझा रहे हैं श्री कृष्ण । वैराग्य ही कर्म बन्धन को काट सकता है । वैराग्य नामक शस्त्र से इस कर्म बन्धन रुपी अपने संसार को दृढ़ता से काट दें ।
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