ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २०२
तमेव प्रपद्ये .. (अध्याय १५ - श्लोक ४)
தமேவ ப்ரபத்யே ;.. (அத்யாயம் 15 - ஶ்லோகம் 4)
Tameva Prapadye .. (Chapter 15 - Shlokam 4)
अर्थ : आप ही को शरण आता हूँ ।
शरणम अहम् प्रपद्ये । मैं आपके चरणों में शरण आता हूँ । शरणागत होना यह हिन्दू धर्म की , केवल हिन्दू धर्म की विशेषता है । शरणागत और पराधीन गुलाम इन दोनों में अन्तर है । बलवन्त बलात्कार से गुलामी थोपी जाती है । स्वेच्छा से शरण जाता है । बलहीन व्यक्ति गुलाम बनता है । अपार मनःशक्ति जिसमे है , वही शरण जाता है । धन और अधिकार की गुलामी होती है । यजमान जो पैसे फेंकता है और यजमान का हाथ जो चाबुक उठाता है , वही गुलाम को बांधने वाले बन्धन हैं । गुलामी को दृढवत बनाने वाले शासन-पत्र जैसे हैं । शरणागत के लिए कोई ऐसे बन्धन नहीं हैं । शरण है परन्तु पूर्ण रूपेण स्वतंत्र है । उसके सर्व अवश्यकताओं की पूर्ती यजमान द्वारा ही होती हैं । परन्तु उसे इस विषय में कोई चिन्ता या अपेक्षा नहीं । वह तो निश्चिन्त है । गुलामी एक व्यापारी समझौता जैसा है । मेरे कार्य , मेरे नियम .. बदले में तुम्हें वेतन , भोजन आदि । शरणागति स्नेह , प्रेम और भक्ति के प्रकटीकरण है । गुलाम और यजमान के बीच भावपूर्ण रिश्ता होता नहीं । हो तो वह गुस्सा , द्वेष आधारित ही होगा । शरणागत के मन में यजमान के प्रति स्नेह प्रेम पूर्ण भाव होता है । गुलाम को जब अपनी अवस्था (गुलामी) का बोध होता है , वह उस अवस्था से मुक्त होने के प्रयत्न में लगता है । शरणागत अपनी अवस्था में नित्य निरन्तर रहने की कामना ही करता है । गुलाम का मन शोक पूर्ण होता है । गुलामी एक शोकावस्था है । शरणागत का मन आनन्द से भरा होता है । प्रपद्य अवस्था एक आनन्द मय अवस्था है ।
शरणागति केवल पवित्र , निःस्वार्थ व्यक्ति और समूह के लिये होता है । भगवान , कोई दिव्य लक्ष्य या कोई संगठन जो किसी दिव्य लक्ष्य के लिये कार्य कर रहा हो । शरणागति किसी व्यक्ति के लिये भी हो सकता है जो पुण्यात्मा हो , निःस्वार्थ हो , किसी प्रेरित लक्ष्य के लिये समर्पित हो । गुलामी सर्वदा किसी मनुष्य की ही की जा सकती है , ऐसा मनुष्य जो कठोर , निर्दयी , शोषण करने वाला , शक्तिशाली , कपटी , अहंकारी और स्वार्थी है ।
शरणागति केवल पवित्र , निःस्वार्थ व्यक्ति और समूह के लिये होता है । भगवान , कोई दिव्य लक्ष्य या कोई संगठन जो किसी दिव्य लक्ष्य के लिये कार्य कर रहा हो । शरणागति किसी व्यक्ति के लिये भी हो सकता है जो पुण्यात्मा हो , निःस्वार्थ हो , किसी प्रेरित लक्ष्य के लिये समर्पित हो । गुलामी सर्वदा किसी मनुष्य की ही की जा सकती है , ऐसा मनुष्य जो कठोर , निर्दयी , शोषण करने वाला , शक्तिशाली , कपटी , अहंकारी और स्वार्थी है ।
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