ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २०५
वायुर्गन्धान इवाशयात .. (अध्याय १५ - श्लोक ८)
வாயுர் கந்தான் இவாஶயத் .. (அத்யாயம் 15 - ஶ்லோகம் 8)
Vaayur Gandhaan Ivaashayat .. (Chapter 15 - Shlokam 8)
अर्थ : वायु जैसे गन्ध को साथ ले जाती हैं ... ।
पञ्च महा भूत हैं । .. प्रकृति के पाँच आधार तत्त्व .. पृथ्वी या भूमि , आप या जल , वायु , अग्नि और आकाश या नभ ..
हमें पाँच ज्ञानेन्द्रिय प्राप्त हैं । चक्षु या आँख , कर्ण , नासी , जिह्वा और त्वचा ।
ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय नहीं , परन्तु उन ज्ञानेन्द्रियों के उपकरण हैं । इन उपकरणों की जो क्षमता है , सही अर्थ में वही ज्ञानेन्द्रिय हैं । पश्यन (देखना) ; शृण्वन (सुनना) ; जिघ्रन (सूंघना) ; अश्नन (स्वाद लेना) ; स्पृशन (स्पर्श करना) .. आदि हैं इन इन्द्रियों की क्षमता ।
इन्द्रियों के विषय हैं पाँच । ये विषय ही इन्द्रियों के लिए भोजन हैं । दृश्य आँख का विषय है । शब्द कान का विषय है । गन्ध नासी का और रूचि जिह्वा का विषय है । स्पर्श यह त्वचा का विषय है ।
प्रत्येक इन्द्रिय के लिये पञ्च भूतों में एक प्रधान अधिपति है । आँख का अधिपति है अग्नि । आकाश कान का अधिपति है । वायु नासी का और जल जिह्वा का अधिपति है । त्वचा का अधिपति भूत है पृथ्वी ।
वायु ही गन्ध को स्थान से स्थान ले जाती है । हवा चली नहीं तो हमारे लिए गन्ध का अनुभव असम्भव है । गन्ध को प्रकट करने वाला वह वस्तु वायु से स्पर्शित किया जाना चाहिए । वायु की दिशा हमारी ओर होनी चाहिये । अपनी नासिका में जो सहस्रों जिघ्रन के एंटेना हैं , वायु उन्हें स्पर्शित करना चाहिये । ये एंटेना हवा के साथ आये गन्ध को Electro - magnetic waves में परिवर्तित करते हैं । Nasal chord के माध्यम से इन तरंगों को बुद्धिके पास भेज देते हैं ये एंटेना । बुद्धि नासी से आये इन तरंगों को चित्त में संगृहीत पुराने अनुभवों से परखती है और उस गन्ध को पहचानती है ।
वायुर्गंधान इव आशयात । वायु जैसे गन्ध को ले जाती है ... यह उपमा जीव के लिए कही गयी है । (सूक्ष्म शरीर से बंधी आत्मा जीव कही जाती है ।) इन्द्रिय और मन के साथ बंधी गयी आत्मा प्रकृति के आकर्षणों में फंसती है और तल्लीन हो जाती है । यह जीव जब अपने स्थूल शरीर का त्याग करता है , तब अपने साथ संग्रहित विषय वासनाओं को साथ ले जाता है । इन्द्रिय और विषयों में हुए संयोग से प्राप्त अनुभवों का सार ही वासना है । जीव इन वासनाओं के साथ स्थूल शरीर छोड़ता है और अन्य शरीर प्राप्त करता है । मनुष्यों में पाए जाने वाले भिन्न भिन्न स्वभाव , गुण , प्रतिभायें आदि के कारण ये ही पूर्व जन्म वासनायें हैं । कुछ बच्चे दो तीन वर्ष की आयु में किसी विशेष , अकल्पनीय प्रतिभा प्रदर्शित करते हैं । उनके ये पूर्व जन्म वासना जो उनके साथ गत जन्म से इस जन्म तक आयी हैं , वही इस चमत्कारी प्रतिभा का कारण है ।
हमें पाँच ज्ञानेन्द्रिय प्राप्त हैं । चक्षु या आँख , कर्ण , नासी , जिह्वा और त्वचा ।
ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय नहीं , परन्तु उन ज्ञानेन्द्रियों के उपकरण हैं । इन उपकरणों की जो क्षमता है , सही अर्थ में वही ज्ञानेन्द्रिय हैं । पश्यन (देखना) ; शृण्वन (सुनना) ; जिघ्रन (सूंघना) ; अश्नन (स्वाद लेना) ; स्पृशन (स्पर्श करना) .. आदि हैं इन इन्द्रियों की क्षमता ।
इन्द्रियों के विषय हैं पाँच । ये विषय ही इन्द्रियों के लिए भोजन हैं । दृश्य आँख का विषय है । शब्द कान का विषय है । गन्ध नासी का और रूचि जिह्वा का विषय है । स्पर्श यह त्वचा का विषय है ।
प्रत्येक इन्द्रिय के लिये पञ्च भूतों में एक प्रधान अधिपति है । आँख का अधिपति है अग्नि । आकाश कान का अधिपति है । वायु नासी का और जल जिह्वा का अधिपति है । त्वचा का अधिपति भूत है पृथ्वी ।
वायु ही गन्ध को स्थान से स्थान ले जाती है । हवा चली नहीं तो हमारे लिए गन्ध का अनुभव असम्भव है । गन्ध को प्रकट करने वाला वह वस्तु वायु से स्पर्शित किया जाना चाहिए । वायु की दिशा हमारी ओर होनी चाहिये । अपनी नासिका में जो सहस्रों जिघ्रन के एंटेना हैं , वायु उन्हें स्पर्शित करना चाहिये । ये एंटेना हवा के साथ आये गन्ध को Electro - magnetic waves में परिवर्तित करते हैं । Nasal chord के माध्यम से इन तरंगों को बुद्धिके पास भेज देते हैं ये एंटेना । बुद्धि नासी से आये इन तरंगों को चित्त में संगृहीत पुराने अनुभवों से परखती है और उस गन्ध को पहचानती है ।
वायुर्गंधान इव आशयात । वायु जैसे गन्ध को ले जाती है ... यह उपमा जीव के लिए कही गयी है । (सूक्ष्म शरीर से बंधी आत्मा जीव कही जाती है ।) इन्द्रिय और मन के साथ बंधी गयी आत्मा प्रकृति के आकर्षणों में फंसती है और तल्लीन हो जाती है । यह जीव जब अपने स्थूल शरीर का त्याग करता है , तब अपने साथ संग्रहित विषय वासनाओं को साथ ले जाता है । इन्द्रिय और विषयों में हुए संयोग से प्राप्त अनुभवों का सार ही वासना है । जीव इन वासनाओं के साथ स्थूल शरीर छोड़ता है और अन्य शरीर प्राप्त करता है । मनुष्यों में पाए जाने वाले भिन्न भिन्न स्वभाव , गुण , प्रतिभायें आदि के कारण ये ही पूर्व जन्म वासनायें हैं । कुछ बच्चे दो तीन वर्ष की आयु में किसी विशेष , अकल्पनीय प्रतिभा प्रदर्शित करते हैं । उनके ये पूर्व जन्म वासना जो उनके साथ गत जन्म से इस जन्म तक आयी हैं , वही इस चमत्कारी प्रतिभा का कारण है ।
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