ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २०६
सोमः भूत्वा रसात्मकः .. (अध्याय १५ - श्लोक १३)
ஸோமஹ பூத்வா ரஸாத்மகஹ .. (அத்யாயம் 15 - ஶ்லோகம் 13)
Somah Bhootvaa Rasaatmakah .. (Chapter 15 - Shlokam 13)
अर्थ : चंद्र बनकर मैं ही पेड़ पौधों को जीव रस देता हूँ ।
स्थावर जीवों को जीव रस प्रदान करने वाला मैं हूँ । पौधे , वृक्ष , लता आदि चन्द्र से ही जीव सत्त्व प्राप्त करते हैं । उनमें भी आयुर्वेद में उपयुक्त ओषधि वनस्पतियाँ अपनी ओषधि रस चन्द्र से ही प्राप्त करते हैं । अपने आयुर्वेद शास्त्र का कहना है यह । उसी प्रकार एक धारणा है की चन्द्र किरण अश्विन पूर्णिमा की रात में अमृत बरसाते हैं और इस आधार पर कोजागिरी या शरद पूर्णिमा नामक उत्सव मनाया जाता है । उस रात खुले आँगन में , चन्द्र प्रकाश में दूध उबालकर पीया जाता है । चन्द्र हमारे मन को बाधित करता है , यह भी मनो विज्ञान शास्त्र में एक धारणा है । कई प्रकार के मानसिक रोग अमावस्य या पूर्णिमा के दिन उत्तेजित होते हैं । हो सकता है आज का विज्ञान इन बातों को मानता नहीं । किसी रसायन या ओषधि कंपनी की आर्थिक सहायता से , कुछ उपकरणों के आधार पर शोध कार्य कर , कुछ रिपोर्ट को ही वैज्ञानिक सत्य नाम से प्रस्तुत करने वाला आज का विज्ञान हमारे इन धारणाओं को मानता नहीं । मैं तो यही कहूंगा की विज्ञान आज के दिन अपने हिन्दू शास्त्र की गहरायी तक पहुँचा नहीं । समय लगेगा । आगे जाकर पहुँचेगा और इन्हें मानेगा ।
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