ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २२३
दम्भ मान मदान्विताः .. (अध्याय १६ - श्लोक १०)
தம்ப மான மதான்விதாஹ .. (அத்யாயம் 16 - ஶ்லோகம் 10)Dambha Maana Madaanvitaah .. (Chapter 16 - Shlokam 10)
अर्थ : असुर दम्भ , मान और मद से परिपूर्ण है ।
दम्भ आज की दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित रोग है । जो नहीं उसे होने का भ्रम उत्पन्न करने के प्रयास और जो है उसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाने के प्रयास दम्भ है । धन , गुण , ज्ञान आदि । हेतु क्या है ?? अल्प पुरस्कार , झूठी प्रशंसा , खोटी मान मर्यादा आदि मिलाने की अपेक्षा से दम्भ प्रकट होता है । उधार लेकर विवाह जैसे प्रसंगों में आदमभर करना ; दिखावे के लिये महंगे वस्त्र , काला चश्मा , जूते , बॉडी स्प्रे आदि पहनना । (इनमे अधिकांश व्यक्तियों को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक अन्तर्वस्त्र स्वच्छ पहनने की आदत नहीं । स्वच्छता भी दिखावे के लिये ।) अन्दर उधार का ढीग .. बाहर दिखावे के लिये खर्चीली आदतें । अन्दर अज्ञान का अन्धेरा .. मंच पर से अलंकृत शब्दों के साथ प्रवचन .. अन्दर आत्म विशाव्स शून्य , स्वयं के जीवन की समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ , परन्तु बाहर अन्यों में प्रेरणा और उत्साह भरने का प्रयास (भाषण) , अन्दर खोखला मन .. बाहर आध्यात्मिक चिन्ह ।
अपने पास जो है या जो होने का आभास है , वह संसार में अन्य किसी के पास नहीं और केवल स्वयं के पास ही विशेष रूप से है , ऐसा समझ लेना अभिमान है । आज वयो वृद्ध व्यक्ति एकत्र आते हैं तो अपने अपने नातू नातिन की चर्चा ऐसे करते हैं जैसे मानो वह 'super - intelligent , super - skilled' है । मान या अभिमान अति होने से वह मद में रूपांतरित होता है । मद नशा चढ़ाता है और चिंतन को बाधित करता है । मद के आवेश में , मोहित मनःस्थिति में असुर अन्यों को अपमानित कर देता है । नीचे दिखाकर दुःख पहुँचाता है । मदान्वित असुर मित्रों को और हितैषियों को खो देता है । अकेला हो जाता है । असमर्थ व्यक्ति , स्वार्थी और चापलूस उसे घेर लेते हैं । ये भी जन डूबने वाले जहाज से बच निकलने की तैयारी में बैठे चूहे जैसे हैं । उसे छोड़ भागने की प्रतीक्षा में बैठे जन हैं । असुर के लिये अपने से श्रेष्ट व्यक्तियों के साथ , सम व्यक्तियों के साथ भी कार्य करना कठिन है । यही असुर के गिरने की प्रतीक्षा कर रहा प्रचण्ड गड्डा है ।
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