ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २२४
अशुचि व्रताः .. (अध्याय १६ - श्लोक १०)
அஶுசி வ்ரதாஹ ... (அத்யாயம் 16 - ஶ்லோகம் 10)
Ashuchi Vrataah .. (Chapter 16 - Shlokam 10)
अर्थ : मलीन व्रत या सङ्कल्प ।
असुर भीड़ों के संकल्प अशुद्ध (मलीन) हैं । (यह भी कह सकते हैं की अशुद्ध जिसके संकल्प वह असुर ।)
"पाए तो द्राविड़ देश .. नहीं तो श्मशान" इस संकल्प के साथ द्राविड़ कळगम ने अपना प्रवास प्रारम्भ किया" । गत ५० , ६० वर्षों में इनके संकल्प का नाशक प्रभाव हम तमिळ प्रदेश में देख रहे हैं । (सम्भव है की वे अपने संकल्प का दूसरा भाग का ही क्रियान्वयन कर रहे हैं । द्राविड़ देश मिला नहीं । जो तमिळ प्रदेश मिला , उसे ही श्मशान बना रहे हैं !!)
वर्ष २००१ में जब पोप भारत आये तो अपना संकल्प की घोषणा इन शब्दों में कहा । "प्रथम मिलिनियम में यूरोपी देशों को ख्रिस्ती बनाया । दूसरे मिलिनियम में आफ्रिकी देशों में ख्रिस्ती फैलाया । आगत तीसरा मिलिनियम में एशियाई देशों में फसल कांटना है" । फसल कांटने का अर्थ .. मत परिवर्तन , मना करने वालों की हत्या , नैसर्गिक सम्पदा का लूट और शोषण , चारित्र्य हीन समाज की स्थापना आदि आदि , जो उन्होंने यूरोप और आफ्रिका में कर दिखाया ।
मुसलमान भीड़ भी विश्व भर इस्लाम पंथ की स्थापना करने का संकल्प लेकर , हाथ में तलवार लिए देशों पर आक्रमण किया । सर्वदूर रक्त की नदियाँ बहाया । लूट और स्त्रियों पर बलात्कार हुए ।
"Government of the Proletariat" या श्रमिकों का शासन निर्माण करना यह कम्यूनिस्टों का संकल्प रहा । बहुत छोटे समय में बहुत अधिक नाश करने का श्रेय कम्यूनिस्टों को ही मिलना चाहिए । भारत में सर्वाधिक हिंसा दो प्रांतों में प्रचलित है , बंग और केरल , दोनों ही कम्यूनिस्ट शासित प्रान्त हैं ।
हिंसा , मनुष्य जीवों का नाश , प्राकृतिक सम्पदा का शोषण , चारित्र्य का हनन आदि आदि आसुरी संकल्प के परिणाम हैं । इसे ही अशुचि व्रत कह रहे हैं श्री कृष्ण ।
यहाँ एक प्रश्न उठाया जाता है । अपने ऋषियों ने भी "कृण्वन्तो विश्वमार्यम" का संकल्प लेकर अन्य देशों में गये । क्या वह भी अशुचि व्रत नहीं ?? हमारे ऋषिगण अकेले ही गए । ना उन्हें राजाओं का ना जनता का आर्थिक या अन्य समर्थन रहा । ऋषियों ने उन देशों की जनता के बीच हिंसा नहीं भड़काया । शस्त्र पहुँचाकर सरकार के विरुद्ध अलगाववाद नहीं भड़काया । उक्त देशों की जनता को जीवन के श्रेष्ट सिद्धांत सिखाया । उनके जीवन स्तर ऊंचा उठाया । सही अर्थ में जनों को आर्य बनाने , श्रेष्ट बनाने की ही चेष्टा किया ।
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