ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २२८
अन्यायेनार्थ सञ्चयान् .. (अध्याय १६ - श्लोक १२)
அந்யாயேனார்த ஸஞ்சயான் .. (அத்யாயம் 16 - ஶ்லோகம் 12)
Anyaayenaartha Sanchayaan .. (Chapter 16 - Shlok 12)
अर्थ : अन्याय पूर्ण मार्ग से अर्थ सञ्चय करता है असुर ।
अर्थ यह चार पुरुषार्थों में एक है । अपने संसारी जीवन में जिन्हें प्राप्त करना ही जीवन का लक्ष्य है , धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष , उन चार में अर्थ एक है । संसार में यशस्वी जीवन के लिए अर्थ संचयन आवश्यक है ।
अर्थ और काम आवश्यक है , अनिवार्य है , परन्तु धर्म की सीमा में ही रहे । अन्याय पूर्ण मार्ग से धनार्जन पाप माना जाता है । श्री कृष्ण उसे ही आसुरी वृत्ति कह रहे हैं । पिछले श्लोक में दम्भ को , धन का अनाप शनाप खर्च को आसुरी कहा । यहाँ धन का अर्जन , अधिक धन अर्जन से नहीं श्री कृष्ण को आक्षेप , अन्याय पूर्ण मार्ग से धनार्जन को ही आसुरी कह रहे हैं ।
अन्याय पूर्ण धन सम्पादन क्या होता है ?? प्रकृति का शोषण कर पाया हुआ धन , मनुष्य समूह का शोषण कर अर्जित किया हुआ धन , प्रकृति को नाश पहुँचाकर प्राप्त धन , मनुष्य समाज को नाश पहुँचाकर पाया धन , अन्यों की संपत्ति लूटकर पाया धन , अपने परिश्रम के प्रमाण से अधिक धन , प्रशासन के नियमों का उल्लंघन कर प्राप्त धन आदि आदि अन्याय पूर्ण धन संचयन हैं ।
प्रकृति का शोषण : फैक्टरी के उत्पादन से नदी को प्रदूषित करना , फैक्टरी की आवश्यकता के लिये सम्पूर्ण नदी के पानी का अवैध उपयोग करना , भूमि की गहराई जमा जल खींच लेना , राजनीतिज्ञ और राजंग अधिकारियों में पैसा बांटकर भूमि , जंगल और पर्वोतों का अतिक्रमण कर हड़प लेना , वृक्षों की अवैध कटाई , अवैध तरीके अपनाकर वायु प्रदूषण , अधिक फसल और अधिक लाभ के लोभ से भूमि में रसायन भरकर भूमि को बंजर बनाना आदि आदि । इस प्रकार के कार्य करने वाले ना केवल उद्योगपति वर्ग हैं , योग शिक्षण , भजन , ध्यानादि सात्त्विक विषय सिखाने वाली संस्था भी हैं ।
मनुष्य वर्ग का शोषण : बाल श्रमिक , दूर प्रदेशों से श्रमिक लाना , उनकी रहने की और भोजन की अधूरी व्यवस्था करना , उद्योग परिसर में सुरक्षा के उपकरण और व्यवस्था करने में कंजूसी , गरीब छोटे किसानों की भूमि को एकड़ पर तीस चालीस हजार का लालच दिखाकर खरीद लेना और उन्हें भूमि-हीन बनाना आदि रीति से मनुष्यों का शोषण ।
प्रकृति का नाश : जल , वायु और भूमि का प्रदूषण , यह सर्व प्रमुख नाश है । जल , जंगल आदि नैसर्गिक संसाधन का घटना यह एक अन्य नाश है । भूमि का सत्त्व और उपज शक्ति का नाश और परिणामतः जनता का आरोग्य पर बाधक प्रभाव ।
मनुष्य समाज में नाश : ग्रामों का नाश , लघु उद्योग का नाश , हस्त कला पर आधारित उद्योगों का नाश , जन प्रवाह से बहते हुए नगर , नागरी व्यवस्था पर दबाव ।
अन्यों का धन व संपत्ति का लूट : अतिक्रमण , भूमि पर अतिक्रमण यह महारोग सर्वदूर फैला है । मंदिरों की भूमि का अतिक्रमण , नदियाँ , तालाब और नाल नहरों पर अतिक्रमण , रेलवे और अन्य सरकारी संपत्ति का अतिक्रमण , मार्गों का अतिक्रमण , फुटपाथ का अतिक्रमण , यह राक्षसी वृत्ति बहुत तेजी से और समाज के सभी स्तर में फैल रहा है । राजनैतिक पक्षों के गुंडे साधारण व्यक्ति के घर और भूमि पर कब्जा करना और उसे कम से कम खरीदना , झूठे , परन्तु आकर्षक विज्ञापन देकर जन साधारण की जीवन भर के बचत को हड़प लेना आदि आदि ।
परिश्रम से कई अधिक चार्ज करना :ईरोड नगर में एक चमार , फटे वस्त्र , दिन भर में ५० , १०० की आमदनी । मेरा चप्पल का अंगूठा कट गया था । उसने सिलाया । मैंने चप्पल पहना और पुछा , "कितने ??" "दीजिये ! अप्पको जो ठीक लगे " मैंने उसे दो रूपये का नोट दिया और चलने लगा । उसने ताली बजाकर मुझे बुलाया । मैं वापस आया तो मेरे हाथ में एक रुपये का सिक्का थोंपा । "अरेरे !! रख लीजिये" मैं ने कहा । "मेरे परिश्रम से अधिक पैसा मेरे लिए या मेरे बच्चों लिए भला नहीं करेगा ।" यह उसका उत्तर था । परन्तु , समाज में प्रचलित वातावरण इसके विपरीत है । कम से कम परिश्रम में अधिकाधिक धन , विना परिश्रम धन , वह भी आधा 'ब्लेक' में और आधा 'व्हाइट' में । अपना अंगूठा दिखाकर करोड़ों में कमाने वाला "प्रेरणा" देने वाले वक्ता नई नागपुर में मेरे मित्र के कॉलेज में आया था । प्रवेश शुल्क था २५,००० रूपये । उसमे ७,००० रूपये प्रति व्यक्ति मेरे मित्र के लिए (ताकि उसे भी हॉल भरने की प्रेरणा मिले) .. बचे हुए १८,००० में ११ ब्लेक में और ७ व्हाइट में ।
नियमों का उल्लंघन : यह भी देश भर पसरा हुआ रोग है । नियम मालूम नहीं । मालूम हो तो भी पालन करने की वृत्ति नहीं , पालन करने की इच्छा हो तो भी व्यवस्था इतनी त्रासदायक और प्रतिकूल की नियम पालन बहुत कठिन । वस्तु वहन (Transport) , श्रमिकों के लिए ESI , PPF , Pension आदि , आयकर , भवन निर्माण , आदि में नियमों का उल्लंघन सर्वाधिक है । हेतु ?? अपना धन बचाओ । परिणाम से इन विभागों में भ्रष्टाचार भी सर्वाधिक है । कोई बड़ा अपघात हो जाता है तो कुछ दिनों के लिए चर्चा , जागृति होती है । पर मूल व्यवस्था नियम उल्लंघन और भ्रष्टाचार के पक्ष में है ।
अर्थ और काम आवश्यक है , अनिवार्य है , परन्तु धर्म की सीमा में ही रहे । अन्याय पूर्ण मार्ग से धनार्जन पाप माना जाता है । श्री कृष्ण उसे ही आसुरी वृत्ति कह रहे हैं । पिछले श्लोक में दम्भ को , धन का अनाप शनाप खर्च को आसुरी कहा । यहाँ धन का अर्जन , अधिक धन अर्जन से नहीं श्री कृष्ण को आक्षेप , अन्याय पूर्ण मार्ग से धनार्जन को ही आसुरी कह रहे हैं ।
अन्याय पूर्ण धन सम्पादन क्या होता है ?? प्रकृति का शोषण कर पाया हुआ धन , मनुष्य समूह का शोषण कर अर्जित किया हुआ धन , प्रकृति को नाश पहुँचाकर प्राप्त धन , मनुष्य समाज को नाश पहुँचाकर पाया धन , अन्यों की संपत्ति लूटकर पाया धन , अपने परिश्रम के प्रमाण से अधिक धन , प्रशासन के नियमों का उल्लंघन कर प्राप्त धन आदि आदि अन्याय पूर्ण धन संचयन हैं ।
प्रकृति का शोषण : फैक्टरी के उत्पादन से नदी को प्रदूषित करना , फैक्टरी की आवश्यकता के लिये सम्पूर्ण नदी के पानी का अवैध उपयोग करना , भूमि की गहराई जमा जल खींच लेना , राजनीतिज्ञ और राजंग अधिकारियों में पैसा बांटकर भूमि , जंगल और पर्वोतों का अतिक्रमण कर हड़प लेना , वृक्षों की अवैध कटाई , अवैध तरीके अपनाकर वायु प्रदूषण , अधिक फसल और अधिक लाभ के लोभ से भूमि में रसायन भरकर भूमि को बंजर बनाना आदि आदि । इस प्रकार के कार्य करने वाले ना केवल उद्योगपति वर्ग हैं , योग शिक्षण , भजन , ध्यानादि सात्त्विक विषय सिखाने वाली संस्था भी हैं ।
मनुष्य वर्ग का शोषण : बाल श्रमिक , दूर प्रदेशों से श्रमिक लाना , उनकी रहने की और भोजन की अधूरी व्यवस्था करना , उद्योग परिसर में सुरक्षा के उपकरण और व्यवस्था करने में कंजूसी , गरीब छोटे किसानों की भूमि को एकड़ पर तीस चालीस हजार का लालच दिखाकर खरीद लेना और उन्हें भूमि-हीन बनाना आदि रीति से मनुष्यों का शोषण ।
प्रकृति का नाश : जल , वायु और भूमि का प्रदूषण , यह सर्व प्रमुख नाश है । जल , जंगल आदि नैसर्गिक संसाधन का घटना यह एक अन्य नाश है । भूमि का सत्त्व और उपज शक्ति का नाश और परिणामतः जनता का आरोग्य पर बाधक प्रभाव ।
मनुष्य समाज में नाश : ग्रामों का नाश , लघु उद्योग का नाश , हस्त कला पर आधारित उद्योगों का नाश , जन प्रवाह से बहते हुए नगर , नागरी व्यवस्था पर दबाव ।
अन्यों का धन व संपत्ति का लूट : अतिक्रमण , भूमि पर अतिक्रमण यह महारोग सर्वदूर फैला है । मंदिरों की भूमि का अतिक्रमण , नदियाँ , तालाब और नाल नहरों पर अतिक्रमण , रेलवे और अन्य सरकारी संपत्ति का अतिक्रमण , मार्गों का अतिक्रमण , फुटपाथ का अतिक्रमण , यह राक्षसी वृत्ति बहुत तेजी से और समाज के सभी स्तर में फैल रहा है । राजनैतिक पक्षों के गुंडे साधारण व्यक्ति के घर और भूमि पर कब्जा करना और उसे कम से कम खरीदना , झूठे , परन्तु आकर्षक विज्ञापन देकर जन साधारण की जीवन भर के बचत को हड़प लेना आदि आदि ।
परिश्रम से कई अधिक चार्ज करना :ईरोड नगर में एक चमार , फटे वस्त्र , दिन भर में ५० , १०० की आमदनी । मेरा चप्पल का अंगूठा कट गया था । उसने सिलाया । मैंने चप्पल पहना और पुछा , "कितने ??" "दीजिये ! अप्पको जो ठीक लगे " मैंने उसे दो रूपये का नोट दिया और चलने लगा । उसने ताली बजाकर मुझे बुलाया । मैं वापस आया तो मेरे हाथ में एक रुपये का सिक्का थोंपा । "अरेरे !! रख लीजिये" मैं ने कहा । "मेरे परिश्रम से अधिक पैसा मेरे लिए या मेरे बच्चों लिए भला नहीं करेगा ।" यह उसका उत्तर था । परन्तु , समाज में प्रचलित वातावरण इसके विपरीत है । कम से कम परिश्रम में अधिकाधिक धन , विना परिश्रम धन , वह भी आधा 'ब्लेक' में और आधा 'व्हाइट' में । अपना अंगूठा दिखाकर करोड़ों में कमाने वाला "प्रेरणा" देने वाले वक्ता नई नागपुर में मेरे मित्र के कॉलेज में आया था । प्रवेश शुल्क था २५,००० रूपये । उसमे ७,००० रूपये प्रति व्यक्ति मेरे मित्र के लिए (ताकि उसे भी हॉल भरने की प्रेरणा मिले) .. बचे हुए १८,००० में ११ ब्लेक में और ७ व्हाइट में ।
नियमों का उल्लंघन : यह भी देश भर पसरा हुआ रोग है । नियम मालूम नहीं । मालूम हो तो भी पालन करने की वृत्ति नहीं , पालन करने की इच्छा हो तो भी व्यवस्था इतनी त्रासदायक और प्रतिकूल की नियम पालन बहुत कठिन । वस्तु वहन (Transport) , श्रमिकों के लिए ESI , PPF , Pension आदि , आयकर , भवन निर्माण , आदि में नियमों का उल्लंघन सर्वाधिक है । हेतु ?? अपना धन बचाओ । परिणाम से इन विभागों में भ्रष्टाचार भी सर्वाधिक है । कोई बड़ा अपघात हो जाता है तो कुछ दिनों के लिए चर्चा , जागृति होती है । पर मूल व्यवस्था नियम उल्लंघन और भ्रष्टाचार के पक्ष में है ।
Comments
Post a Comment