ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २३१
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते .. (अध्याय १६ - श्लोक २४)
தஸ்மாச்சாஸ்த்ரம் ப்ரமாணம் தே .. (அத்யாயம் 16 - ஶ்லோகம் 24)
Tasmaachchaasthram Pramaanam The .. (Chapter 16 - Shloka 24)
अर्थ : शास्त्र ही प्रमाण है ।
अर्जुन के लिए मार्गदर्शक था श्री कृष्ण । युद्ध क्षेत्र में ही नहीं , सदैव , सर्वत्र , सभी परिस्थितियों में अर्जुन को श्री कृष्ण का मार्ग दर्शन मिलता रहा । हमारे लिए कौन है मार्ग दर्शक ??
"शास्त्र ही । शास्त्र के अनुसार अपने कर्मो को करनी चाहिए" , श्री कृष्ण की कथनानुसार । शास्त्र ही प्रमाण है , सर्वथा , सर्वदा । शास्त्रों से अनभिज्ञ रहकर कर्म करना अज्ञान हैं । तामसिक है । शास्त्र के विरुद्ध कर्म करना आसुरी है । शास्त्र अनुभवों का सार है । अन्यों के अनुभव मुझे आवश्यक नहीं , यह विचार अहंकारी विचार है । ऐसे व्यक्ति अपने माता - पिता और अन्य वृद्धों को छोड़ , अपने जीवन का पीछा करते हुए निकल जाते हैं ।
वृद्धों का अनुभव प्राप्त होना हो तो परिवार अखंडित एकत्र रहे , यही अपेक्षा है । वृद्धों के संग जीना होगा ।
परन्तु अपने परिवार के वृद्ध से जीवन के दुर्लभ रहस्य मय शिक्षण मिलने की सम्भावना कम है । वे सामान्य व्यक्ति रहे और सामान्य जीवन जिए , इस कारण । शास्त्र ऋषियों द्वारा रचित हैं । ऋषि वह जिसकी दूरदृष्टि है । ऋषि वह जो अगले कई पीढ़ियों के पार देख सकता है । निःस्वार्थ हैं । अतः हमारा मार्गदर्शन करने योग्य हैं । तस्मात् , शास्त्र को प्रमाण मानकर , उनमे कहे अनुसार कार्य करें । शास्त्रों पर बिना संदेह , पूर्ण श्रद्धा से पालन करें ।
"शास्त्र ही । शास्त्र के अनुसार अपने कर्मो को करनी चाहिए" , श्री कृष्ण की कथनानुसार । शास्त्र ही प्रमाण है , सर्वथा , सर्वदा । शास्त्रों से अनभिज्ञ रहकर कर्म करना अज्ञान हैं । तामसिक है । शास्त्र के विरुद्ध कर्म करना आसुरी है । शास्त्र अनुभवों का सार है । अन्यों के अनुभव मुझे आवश्यक नहीं , यह विचार अहंकारी विचार है । ऐसे व्यक्ति अपने माता - पिता और अन्य वृद्धों को छोड़ , अपने जीवन का पीछा करते हुए निकल जाते हैं ।
वृद्धों का अनुभव प्राप्त होना हो तो परिवार अखंडित एकत्र रहे , यही अपेक्षा है । वृद्धों के संग जीना होगा ।
परन्तु अपने परिवार के वृद्ध से जीवन के दुर्लभ रहस्य मय शिक्षण मिलने की सम्भावना कम है । वे सामान्य व्यक्ति रहे और सामान्य जीवन जिए , इस कारण । शास्त्र ऋषियों द्वारा रचित हैं । ऋषि वह जिसकी दूरदृष्टि है । ऋषि वह जो अगले कई पीढ़ियों के पार देख सकता है । निःस्वार्थ हैं । अतः हमारा मार्गदर्शन करने योग्य हैं । तस्मात् , शास्त्र को प्रमाण मानकर , उनमे कहे अनुसार कार्य करें । शास्त्रों पर बिना संदेह , पूर्ण श्रद्धा से पालन करें ।
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