ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २३९
स यज्ञः सात्त्विकः .. (अध्याय १७ - श्लोक ११)
ஸ யக்ஞஹ ஸாத்வீகஹ .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 11)
Sa Yagyah Saathvikah .. (Chapter 17 - Shlokam 11)
अर्थ : वह यज्ञ सात्त्विक है ।
सात्त्विक व्यक्ति , सत्त्व गुण प्रधान व्यक्ति यज्ञ कैसे करता है ?? श्री कृष्ण तीन विशेषताओं का , तीन लक्षणों का उल्लेख कर रहे हैं । सत्त्व गुणी के प्रत्येक कार्य में , उसकी रुचियों में ये तीन लक्षण प्रकट होते हैं ।
अफलाकांक्षी .. फल के प्रति न राग न रूचि न इष्ट फल प्राप्ति के अपेक्षा ..
विधि दृष्टः .. नियमों से बद्ध ... शास्त्रों में जैसे विदित है , ठीक वैसे .. जैसे किया जाना अपेक्षित है , वैसे ही करने वाला ..
यष्टव्यं इति मनः समाधाय .. यह किया जाना चाहिए .. बस यह एक ही दृढ़ धारणा मन में लिया हुआ ।
यह करने योग्य है , यह किया जाना उचित है , यह किया जाना चाहिए .. ऐसे दृढ़ संकल्प मात्र उस यज्ञ करने की प्रेरणा है सत्त्व गुणी का है । उक्त यज्ञ से उसे कोई अपेक्षा नहीं । किसी भी प्रकार के फल की इच्छा नहीं । फल प्राप्ति की इच्छा नहीं तो अधूरे मन से , जैसे तैसे करता नहीं । जैसे किया जाने की अपेक्षा है , जैसे शास्त्रों में विदित है , उन नियमों का पालन करते हुए उक्त यज्ञ को करता है सत्त्व गुणी । उसमे प्रमुखता से बसा हुआ सत्त्व गुण उससे यही करवायेगा ।
सात्त्विक व्यक्ति , सत्त्व गुण प्रधान व्यक्ति यज्ञ कैसे करता है ?? श्री कृष्ण तीन विशेषताओं का , तीन लक्षणों का उल्लेख कर रहे हैं । सत्त्व गुणी के प्रत्येक कार्य में , उसकी रुचियों में ये तीन लक्षण प्रकट होते हैं ।
अफलाकांक्षी .. फल के प्रति न राग न रूचि न इष्ट फल प्राप्ति के अपेक्षा ..
विधि दृष्टः .. नियमों से बद्ध ... शास्त्रों में जैसे विदित है , ठीक वैसे .. जैसे किया जाना अपेक्षित है , वैसे ही करने वाला ..
यष्टव्यं इति मनः समाधाय .. यह किया जाना चाहिए .. बस यह एक ही दृढ़ धारणा मन में लिया हुआ ।
यह करने योग्य है , यह किया जाना उचित है , यह किया जाना चाहिए .. ऐसे दृढ़ संकल्प मात्र उस यज्ञ करने की प्रेरणा है सत्त्व गुणी का है । उक्त यज्ञ से उसे कोई अपेक्षा नहीं । किसी भी प्रकार के फल की इच्छा नहीं । फल प्राप्ति की इच्छा नहीं तो अधूरे मन से , जैसे तैसे करता नहीं । जैसे किया जाने की अपेक्षा है , जैसे शास्त्रों में विदित है , उन नियमों का पालन करते हुए उक्त यज्ञ को करता है सत्त्व गुणी । उसमे प्रमुखता से बसा हुआ सत्त्व गुण उससे यही करवायेगा ।
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