ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २३५
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः .. (अध्याय १७ - श्लोक ४)
ப்ரேதான்பூதகணாம்ஶ்சான்யே யஜந்தே தாமஸா ஜனாஹ .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 4)
Pretaan Bhootaganaamschaanye Yajante Taamasaa Janaah .. (Chapter 17 - Shlokam 4)
अर्थ : तामसी जन प्रेत भूतगण की पूजा करते हैं ।
अज्ञान , अंधेर , भ्रम , आदि तामस गुण के स्वरुप हैं । तामसी प्रेत भूत की उपासना करता है , याने क्या ?? छाया की पूजा करता है । प्रेत वह जो नहीं है परन्तु होने का भान देता । आज के युग में फिल्मी नट को इस वर्ग में जोड़ सकते हैं । धैर्य जो नहीं है , सतगुण जो है नहीं , सौंदर्य जो है नहीं , शौर्य जो है नहीं , दिखाया जाता है । बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है । प्रेत जैसे ही निर्जीव हैं , केवल परदे पर हैं , प्रतिबिम्ब स्वरुप में हैं । सजीव दिखते हैं । ऐसे फिल्मी नट के बारे में सदैव चिन्तन , उनके जीवन प्रसंग पढ़ने की रूचि , उनके फ़िल्म की चर्चा , उनके जन्म दिवस आदि मनाने में मग्न , उनके पोस्टर लगाना , तोरण बाँधना आदि कार्य में जीवन का बहुमूल्य समय बीत जाता है तमो गुणी का ।
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