ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २४३
वाङ्मयं तप .. (अध्याय १७ - श्लोक १५)
வாங்மயம் தப .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 15)
Vaan(g)mayam Tapa .. (Chapter 17 - Shlokam 15)
अर्थ : यह वाणी का तप है ।
श्री कृष्ण वाक् से होने वाले तप की चर्चा कर रहे हैं यहाँ । वे दो विषयों को वाङ्मय तप कह रहे हैं । १) अनुद्वेग कर वाक्य .. २) स्वाध्याय अभ्यास ..
१) अनुद्वेग कर वाक्य .. उद्वेग या आवेश के विना बोलना .. सुनने वालों के हृदयों में भी आवेश न भरें .. पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा की हत्या के बाद श्री राजीव गांधी ने कहा की "एक विशाल वृक्ष उखड गिरता है तो कुछ छोटे पेड़ पौधों का कुचल जाना स्वाभाविक ही है ।" ये शब्दों ने कांग्रेसियों को भड़का दिया , उत्तेजित कर दिया और उनके द्वारा सिखों के नर संहार के कारण बन गए । वाणी चढ़ाये विना बोलना , चेहरे को रुक्ष बनाये विना बोलना (प्रसन्न वदन के साथ बोलना) , कंठ को फुगाये विना , कंठ के नसों में तनाव के विना बोलना आदि अनुद्वेगकर वाक्य हैं । श्री कृष्ण इस विषय में तीन बिन्दुओं को जोड़ रहे हैं । "सत्यम प्रिय और हितम" .. अनुद्वेगकर तो बोलना है परन्तु सत्य बोलना है । प्रिय बोलना है । और हितकारी वचन बोलना है । यह तापस है वाक् का । यह वेद वाक्य है । वेद की भी यही आज्ञा है । सत्यं ब्रूयात् । प्रियं ब्रूयात् । न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ...
२) स्वाध्याय .. स्वाध्याय एक अभ्यास है । पुस्तक पढ़ने का अभ्यास । दिन प्रति दिन किया जाने योग्य अभ्यास है । पुस्तक पढ़ना .. अच्छे पुस्तक पढ़ना .. स्वयं को ऊंचा उठाने में सहायक पुस्तक पढ़ना .. स्व का अध्ययन या स्व को जानने में सहायक पुस्तकों को पढ़ना ... दिन प्रति दिन पढ़ना .. यही स्वाध्याय है । और यह वाक् का तपस है ।
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