ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २४२
शारीरं तप .. (अध्याय १७ - श्लोक १४)
ஶாரீரம் தப .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 14)
Shareeram Tapa .. (Chapter 17 - Shlokam 14)
अर्थ : यह तपस शारीरिक है ।
शरीर , वाक् और मनस हमें उपलब्ध उपकरण हैं । इन तीनों उपकरणों द्वारा तप संभव है ।
यहाँ श्री कृष्ण शरीर द्वारा तप की चर्चा कर रहे हैं । इस सन्दर्भ में पांच बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं । १) .. पूजनम् .. २) शौचं .. ३) आर्जवम् .. ४) ब्रह्मचर्यम् .. ५) अहिंसा .. आदि शरीर के द्वारा किये जाने वाला तपस है ।
(१) .. मनुष्य जीवन में प्राप्त यह शरीर शुद्ध होता है तपस से । पूजन , नित्य पूजन शारीरिक तप है । देव , द्विज , गुरु और प्राज्ञ की पूजा शारीरिक तप कहे गये हैं ।
अ) .. देव पूजा .. नित्य देव पूजा .. षोडस उपचार के साथ देव पूजा , नित्य देवालय दर्शन और नमस्कार आदि शरीर द्वारा किये जाने वाले तप हैं ।
आ) .. द्विज पूजा .. द्विज को (ब्राह्मण को) दर्शन कर साष्टांग नमस्कार करना उचित है । यह शारीरिक तप है ।
इ) ... गुरु पूजा .. गुरु की सेवा यह शारीरिक तापस है ।
(४) .. ब्रह्मचर्य ... वश हुए इन्द्रिय , काम रहित मनस , ब्रह्म चिन्तन .. ब्रह्मचर्य केवल अविवाहित स्थिति नहीं । संयमित वैवाहिक जीवन में भी ब्रह्मचर्य सम्भव है । ब्रह्मचर्य शारीरिक तप है ।
शरीर , वाक् और मनस हमें उपलब्ध उपकरण हैं । इन तीनों उपकरणों द्वारा तप संभव है ।
यहाँ श्री कृष्ण शरीर द्वारा तप की चर्चा कर रहे हैं । इस सन्दर्भ में पांच बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं । १) .. पूजनम् .. २) शौचं .. ३) आर्जवम् .. ४) ब्रह्मचर्यम् .. ५) अहिंसा .. आदि शरीर के द्वारा किये जाने वाला तपस है ।
(१) .. मनुष्य जीवन में प्राप्त यह शरीर शुद्ध होता है तपस से । पूजन , नित्य पूजन शारीरिक तप है । देव , द्विज , गुरु और प्राज्ञ की पूजा शारीरिक तप कहे गये हैं ।
अ) .. देव पूजा .. नित्य देव पूजा .. षोडस उपचार के साथ देव पूजा , नित्य देवालय दर्शन और नमस्कार आदि शरीर द्वारा किये जाने वाले तप हैं ।
आ) .. द्विज पूजा .. द्विज को (ब्राह्मण को) दर्शन कर साष्टांग नमस्कार करना उचित है । यह शारीरिक तप है ।
इ) ... गुरु पूजा .. गुरु की सेवा यह शारीरिक तापस है ।
ई) .. प्राज्ञ वह जो ज्ञानी है , प्राज्ञ पुरुष है । वे नमस्कार के योग्य हैं । सेवा के योग्य हैं ।
(२) .. शौच .. स्वच्छता .. शरीर को स्वच्छ रखने के प्रयत्नों को शारीरिक तप कह रहे हैं श्री कृष्ण । दिन प्रति दिन दोनों संध्या काल में शीत जल से स्नान , प्राणायाम से श्वास यन्त्र की स्वच्छता , व्यायाम और भोजन सम्बन्धी स्वस्थ आदतें द्वारा जीर्ण यन्त्र की स्वच्छता । ये सभी तप के समान नित्य करने की आवश्यकता है ।
(३) .. आर्जव .. सरलता .. दिखने में सरलता , वस्त्रों में सरलता , वाक् में सरलता , विचार में सरलता , सुलभता से भेंट हो सकती हो ऐसी स्थिति , निष्कपट मैत्री आदि सब आर्जव के ही लक्षण हैं । यह शरीर द्वारा रचित तपस है ।
(४) .. ब्रह्मचर्य ... वश हुए इन्द्रिय , काम रहित मनस , ब्रह्म चिन्तन .. ब्रह्मचर्य केवल अविवाहित स्थिति नहीं । संयमित वैवाहिक जीवन में भी ब्रह्मचर्य सम्भव है । ब्रह्मचर्य शारीरिक तप है ।
(५) अहिंसा ... हिंसा के लिये शरीर ही प्रधान साधन है । बदला लेना , मार का मार से , लात का लात से , अपने सुख के लिये अन्य प्राणियों का , अन्य मनुष्यों का शोषण करना आदि हिंसा है । सहना , क्षमा करना , आदि अहिंसा के प्रकट स्वरुप हैं । अहिंसा यह शरीर का तप है ।
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