ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २३३
यजन्ते सात्त्विका देवान् .. (अध्याय १७ - श्लोक ४)
யஜந்தே ஸாத்த்விகா தேவான் .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 4)
Yajante Saattvikaa Devaan .. (Chapter 17 - Shlokam 4)
अर्थ : सात्त्विकी व्यक्ति देवोँ की पूजा करता है ।
यजन्ते सात्त्विका देवान् । सात्त्विक गुण प्रधान व्यक्ति देव को पूजता है । पूजा करना याने मात्र पुष्प , सुगन्धित द्रव्य , धुप दीपादि चढ़ाकर मंत्र उच्चार से किसी देव प्रतिमा या देव विग्रह की पूजा नहीं । उससे आगे गुण और वृत्तियों पर चिन्तन भी उपासना है । मनुष्य अपना निजी स्वभाव के अनुरूप गुण और वृत्ति की ओर आकर्षित होता है ।
सत्त्व गुण प्रधान व्यक्ति का सात्त्विक गुण और वृत्तियों की ओर आकर्षित होना सहज और स्वाभाविक है । देव सत्त्व गुणों का भण्डार माना जाता है । (सगुण साकार देव की चर्चा है यहाँ , निर्गुण निराकार गुणातीत परमात्मा की नहीं ।) देव सभी जीवों की रक्षण करता है । सभी का पालनहार है । देव सभी जीवों का उद्धारक है । हितैषी है । देव सभी जीवों के योग और क्षेम का निर्वहन करता है । देव उन तत्त्वों का निर्मूलन नाश करता है , जो अन्य जीवों का अहित करते हैं । सत्त्व गुण सभी की भलाई की कामना करता है । सर्वे भवन्तु सुखिनः .. की प्रार्थना करता है । सभी का मंगल हो , सभी में दिव्यता भरे , यही कामना करता है । अतः आश्चर्य नहीं की सत्त्व प्रधान व्यक्ति देव की पूजा ही करता है ।
यजन्ते सात्त्विका देवान् । सात्त्विक गुण प्रधान व्यक्ति देव को पूजता है । पूजा करना याने मात्र पुष्प , सुगन्धित द्रव्य , धुप दीपादि चढ़ाकर मंत्र उच्चार से किसी देव प्रतिमा या देव विग्रह की पूजा नहीं । उससे आगे गुण और वृत्तियों पर चिन्तन भी उपासना है । मनुष्य अपना निजी स्वभाव के अनुरूप गुण और वृत्ति की ओर आकर्षित होता है ।
सत्त्व गुण प्रधान व्यक्ति का सात्त्विक गुण और वृत्तियों की ओर आकर्षित होना सहज और स्वाभाविक है । देव सत्त्व गुणों का भण्डार माना जाता है । (सगुण साकार देव की चर्चा है यहाँ , निर्गुण निराकार गुणातीत परमात्मा की नहीं ।) देव सभी जीवों की रक्षण करता है । सभी का पालनहार है । देव सभी जीवों का उद्धारक है । हितैषी है । देव सभी जीवों के योग और क्षेम का निर्वहन करता है । देव उन तत्त्वों का निर्मूलन नाश करता है , जो अन्य जीवों का अहित करते हैं । सत्त्व गुण सभी की भलाई की कामना करता है । सर्वे भवन्तु सुखिनः .. की प्रार्थना करता है । सभी का मंगल हो , सभी में दिव्यता भरे , यही कामना करता है । अतः आश्चर्य नहीं की सत्त्व प्रधान व्यक्ति देव की पूजा ही करता है ।
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