ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २४७
तपः तत्तामसम् .. (अध्याय १७ - श्लोक १९)
தபஹ தத் தாமஸம் .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 19)
Tapah Tat Taamasam .. (Chapter 17 - Shlokam 19)
अर्थ : वह तामसिक तप है ।
अज्ञान , मोह और भ्रम ये तमो गुणी के लक्षण हैं । कई अस्पष्ट धारणाओं को धरकर , स्वयं को याने अपने शरीर को कष्ट देकर , यातनाएं देकर , अन्यों को भी पीड़ा देकर किसी कार्य में लगता है तामसी । उसके द्वारा किया जाने वाला तपस भी ऐसा ही होगा । तप के हेतु के विषय में भ्रम , तप की विधियों के विषय में अस्पष्टता के साथ तप करेगा । मूढ़ता पूर्ण धारणा को धरकर , मन में हठ लेकर तप करता है तामसी । स्वयं को घोर यातनायें देकर तप में लगेगा तमो गुणी । उसके तप के फलस्वरूप अन्यों को पीड़ा पहुँच सकता है । क्यूँ , विश्व भर का नाश भी हो सकता है । तामसी को उसकी चिन्ता नहीं । तामसी इससे आगे अन्यों को दुःख पहुँचाने की हेतु लेकर ही तपश्चर्य में लगता तो भी आश्चर्य नहीं ।
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