ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २४९
तद्दानं राजसम् .. (अध्याय १७ - श्लोक २१)
தத்தானம் ராஜஸம் .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 21)
Taddaanam Raajasam .. (Chapter 17 - Shlokam 21)
अर्थ : वह राजसी दान है ।
राजसी या रजो गुणी का दान कैसा होता है ?? चर्चा करते हुए श्री कृष्ण तीन बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं ।
प्रत्युपकारार्थं ,.. राजसी केवल और केवल मात्र प्रति उपकार की प्राप्ति इस हेतु लिये , प्रति उपकार की अपेक्षा से ही दान करेगा । स्वयं द्वारा दिया गया दान का स्मरण दिलाने में उसे संकोच नहीं । शब्द प्रयोग के विना ही प्रति उपकार की आज्ञा दे रहा हो ।
फलम उद्दिश्य .. फल प्राप्ति की अपेक्षा से दान करेगा राजसी । यदि सत्त्व गुणी दान लेने वाले का पात्र परखता है , राजसी दान लेने वाले का पद , प्रभाव और अधिकार परखकर दान देता है । इस दान के फलस्वरूप क्या प्राप्त हो सकता इसका गणित लगाते हुए दान देता है ।
दीयते परिक्लिष्टं ... मन में कष्ट के साथ दान देता है राजसी । दान से फलों की अपेक्षा होने के कारण , देना तो अनिवार्य है । टाला नहीं जा सकता । परन्तु दान देते हुए उसे प्रसन्नता होती नहीं । दान देने जोर जबरदस्त बाधित किया गया हो जैसे मनो भाव के साथ , मन में खिन्नता के साथ देता है ।
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