ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २५०
दानं तत्तामसम् .. (अध्याय १७ - श्लोक २२)
தானம் தத்தாமஸம் .. (அத்யாயம் 17 - ஶ்லோகம் 22)
Daanam Tattaamasam .. (Chapter 17 - Shlokam 22)
अर्थ : वह तामसी दान है ।
अज्ञान तामसी का लक्षण है । स्वाभाविक है की तामसी अयुक्त स्थान पर , अयुक्त समय पर , अयोग्य व्यक्ति को दान देगा । तामसी का दान उसके विचार - शून्यता का परिणाम है ।
असत भावना यह तामसी का एक अन्य लक्षण है । स्वाभाविक है तामसी असत कार्य के लिए दान करेगा । वह भी मन में द्वेष भाव के साथ या आदर के विना दान करेगा । दान देने वाले का हाथ ऊपर और लेने वाले का हाथ नीचे होता है । इसी लिये दानी अहंकारी होता है । इस से बचने अपने वेद और शास्त्र विनम्र भाव से दान करने सुझाता है । "मैं इतना ही दे पा रहा हूँ" इस भाव के साथ दान करें , यह अपेक्षा । परन्तु , तामसी पैर के ऊपर पैर डालकर , उद्दंडता के साथ बैठे हुए , बाये हाथ से दान करता है । उसके मन में दान लेने वाले के प्रति न स्नेह है न आदर भाव ।
अज्ञान तामसी का लक्षण है । स्वाभाविक है की तामसी अयुक्त स्थान पर , अयुक्त समय पर , अयोग्य व्यक्ति को दान देगा । तामसी का दान उसके विचार - शून्यता का परिणाम है ।
असत भावना यह तामसी का एक अन्य लक्षण है । स्वाभाविक है तामसी असत कार्य के लिए दान करेगा । वह भी मन में द्वेष भाव के साथ या आदर के विना दान करेगा । दान देने वाले का हाथ ऊपर और लेने वाले का हाथ नीचे होता है । इसी लिये दानी अहंकारी होता है । इस से बचने अपने वेद और शास्त्र विनम्र भाव से दान करने सुझाता है । "मैं इतना ही दे पा रहा हूँ" इस भाव के साथ दान करें , यह अपेक्षा । परन्तु , तामसी पैर के ऊपर पैर डालकर , उद्दंडता के साथ बैठे हुए , बाये हाथ से दान करता है । उसके मन में दान लेने वाले के प्रति न स्नेह है न आदर भाव ।
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