ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २६६
अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् मोहादारभ्यते तत् कर्म तामसम् ... (अध्याय १८ - श्लोक २५)
அநுபந்தம் க்ஷயம் ஹிம்ஸாம் அனவேக்ஷ்ய ச பௌருஷம் மொஹாத் ஆரப்யதே தத் கர்ம தாமஸம் .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 25)
Anubandham Kshayam Himsaam Anavekshya Cha Pourusham Mohaad Aarbhyathe Tat Karma Taamasam .. (Chapter 18 - Shlokam 25)
अर्थ : अपना सामर्थ्य के विचार किये बिना , परिणाम से होने वाले नाश और हिंसा की चिन्ता किये बिना , मोहित अवस्था में आरम्भ किया जाने वाला कर्म तामसी है ।
अज्ञान तामो गुण का प्रधान लक्षण है । अपने सामर्थ्य को जानता नहीं तमो गुणी । बिना चिन्तन कर्म प्रारम्भ कर देता है ।
किया जा रहा कर्म से किस प्रकार के परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं , प्रकृति और अन्य जीवों के ऊपर कैसी हिंसा हो सकती है , नाशकारी प्रभाव हो सकता है इसकी अवज्ञा करते हुए अपने कर्म में लग जाता है तामसी ।
मोह तमो गुण का अन्य एक लक्षण है । तामसी के कर्म मोहित अवस्था में किये जाते हैं । कर्म प्रारम्भ करने के पूर्व , कर्म करते हुए और कर्म किये जाने के बाद भी इसी मोहित अवस्था में रहता है तमो गुणी ।
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