ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २५९
अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम् .. (अध्याय १८ - श्लोक १२)
அநிஷ்டமிஷ்டம் மிஶ்ரம் ச த்ரிவிதம் கர்மணஹ் ஃபலம் .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 12)
Anishtamishtam Mishram Cha Trividham Karmanah Phalam .. (Chapter 18 - Shloka 12)
अर्थ : तीन प्रकार के फल हैं कर्म के - इष्ट फल , अनिष्ट फल और मिश्रित ।
प्रत्येक कर्म निश्चित फल ले आता है । Every action has a reaction .. फल अपने लिये इष्ट हो सकता है , अप्रिय हो सकता है या मिश्रित हो सकता है । फल कैसा प्राप्त हो इसकी कल्पना मात्र हम कर सकते हैं । उसके आगे कुछ नहीं । फल कैसा हो , यह अपने हाथ में नहीं । अन्य कई शक्तियाँ हाथ बांधकर फल की उत्पत्ति करते हैं । उसमे कर्म करने वाले का योगदान कुछ नहीं । फल तो प्राप्त होगा ही , चाहे इसी जन्म में या आगामी जन्मों में । परन्तु यह नियम कर्म फल पर आसक्त व्यक्ति के लिये लागू है ।
कर्म फल के प्रति अनासक्त व्यक्ति तो फल प्रिय है या अप्रिय है इसकी नोंदणी भी करता नहीं । जो भी प्राप्त , उसके लिए स्वीकार् - योग्य है । प्रत्येक कर्म के फल उसे भी प्राप्त है , परन्तु उक्त फल से वह बाधित होता नहीं न ही बंधा जाता है ।
कर्म फल के प्रति अनासक्त व्यक्ति तो फल प्रिय है या अप्रिय है इसकी नोंदणी भी करता नहीं । जो भी प्राप्त , उसके लिए स्वीकार् - योग्य है । प्रत्येक कर्म के फल उसे भी प्राप्त है , परन्तु उक्त फल से वह बाधित होता नहीं न ही बंधा जाता है ।
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