ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २६९
अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठः नैष्कृतिकः अलसः विषादी दीर्घसूत्री कर्ता तामस .. (अध्याय १८ - श्लोक २८)
அயுக்தஹ் ப்ராக்ருதஹ் ஸ்தப்தஹ ஶடஹ நைஷ்க்ருதிகஹ அலஸஹ விஷாதீ தீர்கஸூத்ரீ கர்தா தாமஸ .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 28)
Ayukthah Praakruthah Stabdhah Shathah Naishkruthikah Alasah Vishaadhee Deergha Sootri Kartaa Taamasa .. (Chapter 18 - Shlokam 28)
अर्थ : अयुक्तः , अपरिपक्क्व , हिंसक , हठी , शोकपूर्ण , दुष्कर्मी , आलसी , विषादी , दीर्घसूत्री -- यही तामसी कर्ता हैं ।
मोह , मूढ़ता , अज्ञान , आलस्य , निद्रा आदि तामसी के लक्षण हैं । श्री कृष्ण द्वारा तामसी कर्ता का वर्णन में सूचित वृत्तियाँ सभी इन्हीं लक्षणों के प्रकट स्वरुप हैं ।
अयुक्तः : योग का अभाव । संयम नहीं । करणीयं - अकरणीयम का ज्ञान नहीं । मन की एकाग्रता नहीं । कार्य कुशलता नहीं । श्रद्धा नहीं ।
प्राकृतः अनाड़ी । विद्या या संस्कार का अभाव । लोक व्यवहार नहीं जानने वाला । संसार में जैसे आया , कोई परिवर्तन के विना वैसे ही रहने वाला ।
स्तब्धः : जड़ अवस्था । हिंसक । झुक नहीं सकता । राजसी अहंकार के कारण झुक नहीं सकता । तामसी चिन्तन शून्यता के कारण स्तब्धावस्था में रहता है ।
शठ : मूर्खता पूर्ण हठ । अन्य विचार को कोई शान दिए बिना एक ही विचार को धरकर रखने वाला ।
नैष्कृतिकः : दुष्कृतियाँ करने वाला । कृतघ्नता युक्त । षडयंत्र रचाने वाला ।
अलसः : आलस्य पूर्ण । वर्ण के अनुरूप , जाती के अनुरूप प्राप्त स्वकर्म को नहीं जानने वाला । संसारी जीवन के लिए आवश्यक कर्मों को भी नहीं जानने वाला । व्यर्थ कर्मों में , मनोरंजन में , निद्रा में , गपशप में समय बिताने वाला ।
विषादी : शोक में डूबा । अन्यों के अच्छे जीवन और स्वयं की दयनीय अवस्था से उत्पन्न शोक । परन्तु , स्वयं को सुधारने में अक्षम है तामसी ।
दीर्घ सूत्री : कर्म को आगे समय रेखा में आगे धकेलने वाला । अब नहीं बाद में कभी , यही उसका चिन्तन । तत्क्षण को व्यर्थ बिताने वाला ।
अयुक्तः : योग का अभाव । संयम नहीं । करणीयं - अकरणीयम का ज्ञान नहीं । मन की एकाग्रता नहीं । कार्य कुशलता नहीं । श्रद्धा नहीं ।
प्राकृतः अनाड़ी । विद्या या संस्कार का अभाव । लोक व्यवहार नहीं जानने वाला । संसार में जैसे आया , कोई परिवर्तन के विना वैसे ही रहने वाला ।
स्तब्धः : जड़ अवस्था । हिंसक । झुक नहीं सकता । राजसी अहंकार के कारण झुक नहीं सकता । तामसी चिन्तन शून्यता के कारण स्तब्धावस्था में रहता है ।
शठ : मूर्खता पूर्ण हठ । अन्य विचार को कोई शान दिए बिना एक ही विचार को धरकर रखने वाला ।
नैष्कृतिकः : दुष्कृतियाँ करने वाला । कृतघ्नता युक्त । षडयंत्र रचाने वाला ।
अलसः : आलस्य पूर्ण । वर्ण के अनुरूप , जाती के अनुरूप प्राप्त स्वकर्म को नहीं जानने वाला । संसारी जीवन के लिए आवश्यक कर्मों को भी नहीं जानने वाला । व्यर्थ कर्मों में , मनोरंजन में , निद्रा में , गपशप में समय बिताने वाला ।
विषादी : शोक में डूबा । अन्यों के अच्छे जीवन और स्वयं की दयनीय अवस्था से उत्पन्न शोक । परन्तु , स्वयं को सुधारने में अक्षम है तामसी ।
दीर्घ सूत्री : कर्म को आगे समय रेखा में आगे धकेलने वाला । अब नहीं बाद में कभी , यही उसका चिन्तन । तत्क्षण को व्यर्थ बिताने वाला ।
Comments
Post a Comment