ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७१
अयथावत्प्रजानाती बुद्धिः सा राजसी .. (अध्याय १८ - श्लोक ३१)
அயதாவத் ப்ரஜானாதி ஸா புத்தி ராஜஸீ .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 31)
Ayathaavat Prajaanaati Saa Buddhi Raajasi ... (Chapter 18 - Shlokam 31)
अर्थ : बुद्धि जो सही जानती नहीं , वह राजसी बुद्धि ।
उत्तेजित अवस्था या उद्वेग यह रजस प्रधान व्यक्ति की सहज वृत्ति है । वह विचार करता तो उत्तेजित अवस्था में । वह कार्य करता तो आवेश के साथ । वह भोग करता तो उद्विग्न मन से । उसमें व्याप्त राग - द्वेष ही इसका कारण है । फल के प्रति तीव्र राग , फल प्राप्ति की तीव्र इच्छा । इसके कारण उसका मन अशांत , अस्वस्थ , चिन्ता और संशय के आंधी से युक्त होता है । मन की इस अवस्था बुद्धि को भी बाधित कराती है । बुद्धि भ्रमित और अस्पष्ट चिन्तन करती है । फलस्वरूप बुद्धि देश , काल , सन्दर्भ के अनुरूप कर्मों के विषय में सही निर्णय सुझाने में असमर्थ होती है । यही राजसी बुद्धि है ।
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