ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७२
सर्वार्थान्विपरीतांश्च सा बुद्धि तामसी .. (अध्याय १८ - श्लोक ३२)
ஸர்வார்தான் விபரீதாம்ஶ்ச ஸா புத்தி தாமஸீ .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 32)
Sarvaarthaan Vipareetaamscha saa Buddhi Taamasi ... (Chapter 18 - Shlokam 32)
अर्थ : बुद्धि जो विपरीत ही जानती है और उसे ही सही मानती है , वह तामसी बुद्धि है ।
तामस बुद्धि विपरीत जानती है । तमस का प्रधान लक्षण है अज्ञान । उसके साथ आलस्य जुड़ जाए तो ?? जानने की इच्छा जगती नहीं । और अंधा हठ भी जुड़ता यदि तो ?? विपरीत ही जानेगी । वही तामसी बुद्धि ।
एक तो विवेक का उपयोग कर स्वयं चिन्तन करें तो सही जानें । अन्यथा विनम्रता सहित अन्यों से सुनें और सही जानें । तामसी के पास ना विवेक है । न ही स्वयं चिन्तन करने का सामर्थ्य है (आलस्य जो है) । और न ही अन्यों से सुनने के लिए आवश्यक विनम्रता है । परिणाम से तामसी बुद्धि विपरीत ही जानती है । धर्म को ही अधर्म और अधर्म को धर्म मानती है ।
एक तो विवेक का उपयोग कर स्वयं चिन्तन करें तो सही जानें । अन्यथा विनम्रता सहित अन्यों से सुनें और सही जानें । तामसी के पास ना विवेक है । न ही स्वयं चिन्तन करने का सामर्थ्य है (आलस्य जो है) । और न ही अन्यों से सुनने के लिए आवश्यक विनम्रता है । परिणाम से तामसी बुद्धि विपरीत ही जानती है । धर्म को ही अधर्म और अधर्म को धर्म मानती है ।
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