ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७६
अभ्यासात् रमते यत्र .. (अध्याय १८ - श्लोक ३६)
அப்யாஸாத் ரமதே யத்ர ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 36)
Abhyaasaat Ramate Yatra .. (Chapter 18 - Shlokam 36)
अर्थ : अभ्यास करते करते मनस रमता है ।
अभ्यास करते करते मन रमता है । क्या अच्छा संगीत , कर्ण के लिए मधुर और मन के लिए रम्य संगीत सुनना सुख प्रदान करता है ?? क्या स्वास्थ्य के लिए हितकारी और मंद रूचि वाले भोज्य पदार्थ का आकर्षण मन में जगता है ?? क्या ऐसी रूचि वाले भोजन जिह्वा को सुख प्रदान करता ?? क्या सूर्योदय के पूर्व जागरण और देहाभ्यास हर्षित करता ?? क्या किसी विषय का गहन अध्ययन में मन रमता है ?? हम में अधिकांश जन इन सभी प्रश्नों के उत्तर में 'नहीं' कहेंगे । अल्प जन ही हाँ कहेंगे । उनके अनुभव की चर्चा करें तो एक सामान्य विषय प्रकट होगा । "अभ्यास करते करते ही इन में मन रमता है । मन जितना अधिकाधिक रमता , उसी प्रमाण में आनन्दित होता । इसे श्री कृष्ण सात्त्विक सुख कह रहे हैं ।
अभ्यास करते करते मन रमता है । क्या अच्छा संगीत , कर्ण के लिए मधुर और मन के लिए रम्य संगीत सुनना सुख प्रदान करता है ?? क्या स्वास्थ्य के लिए हितकारी और मंद रूचि वाले भोज्य पदार्थ का आकर्षण मन में जगता है ?? क्या ऐसी रूचि वाले भोजन जिह्वा को सुख प्रदान करता ?? क्या सूर्योदय के पूर्व जागरण और देहाभ्यास हर्षित करता ?? क्या किसी विषय का गहन अध्ययन में मन रमता है ?? हम में अधिकांश जन इन सभी प्रश्नों के उत्तर में 'नहीं' कहेंगे । अल्प जन ही हाँ कहेंगे । उनके अनुभव की चर्चा करें तो एक सामान्य विषय प्रकट होगा । "अभ्यास करते करते ही इन में मन रमता है । मन जितना अधिकाधिक रमता , उसी प्रमाण में आनन्दित होता । इसे श्री कृष्ण सात्त्विक सुख कह रहे हैं ।
Comments
Post a Comment