ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७७
यत्तदग्रे विषमिव परिणामे(S)मृतोपमम् तत्सुखं सात्त्विकम् .. (अध्याय १८ - श्लोक ३६)
யத்தத் அக்ரே விஷமிவ பரிணாமே அம்ருதோபமம் தத் ஸுகம் ஸாத்விகம் ..(அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 36)
Yat Tadagre Vishamiva Parinaame Amrutopamam Tat Sukham Saattvikam .. (Chapter 18 - Shlokam 36)
अर्थ : जो सुख आरम्भ में विष के समान भले लगे , परन्तु अमृत तुल्य परिणाम है , वह सात्त्विक सुख है ।
मधुर संगीत श्रोता के लिये सुखदायी है तो गायक के लिये अधिक सुखदायी है । अमृत तुल्य सुख है वह सुख । यह तो परिणाम है । इस सुख को अनुभव करने कितने वर्षों का अभ्यास करना पड़ा ?? कितना कठोर अभ्यास करना पड़ा ?? क्या वह अभ्यास सुखदायी था ?? ना । सुखों को त्यागकर ही अभ्यास करना पड़ता है ।
स्वस्थ शरीर सुखमयी जीवन का आधार है । बल , निरोगता , ऊर्जा और उत्साह युक्त शरीर प्राप्ति के लिये नित्य देहाभ्यास आवश्यक है । कितने वर्षों का अभ्यास आवश्यक है ?? कैसा अभ्यास ?? क्या वह अभ्यास सुखदायी हो सकता ? ना । कई सुखों को भूलकर ही अभ्यास करना पड़ता है ।
मेस्सी जैसे खिलाड़ी को फूटबाल खेलते हुए देखना अत्यन्त हर्ष - प्रदाता है । खिलाड़ी तो लीन होकर आनन्द से खेलता है । अप्रतिम सुख का अनुभव करता । यह सुख अभ्यास का अन्तिम परिणाम है । दैनिक और नित्य अभ्यास । लम्बे काल तक अभ्यास । कई सुखों का अनदेखा कर किया हुआ कठिन अभ्यास ।
किसी उत्कृष्ट नृत्य कलाकार का भी यही अनुभव है । ऐसे अन्य कई उदाहरण दिए जा सकते हैं । ये सभी सुख अवर्णनीय सुख हैं । अमृततुल्य हैं । परन्तु आरम्भ में सुख नहीं मिलता । उलटा सुखों का त्याग करना पड़ता है । कठिन अभ्यास की आवश्यकता है । मन में कटुता जगाने वाला अभ्यास । आजकल के बच्चों की भाषा में बोर (Boring अनुभव) मन को हतोत्साहित करने वाला अनुभव । परन्तु परिणाम स्वरुप प्राप्त सुख मधुर है । अमृततुल्य है ।
इस प्रकार के सुखों को श्री कृष्ण सात्त्विक सुख कह रहे हैं ।
मधुर संगीत श्रोता के लिये सुखदायी है तो गायक के लिये अधिक सुखदायी है । अमृत तुल्य सुख है वह सुख । यह तो परिणाम है । इस सुख को अनुभव करने कितने वर्षों का अभ्यास करना पड़ा ?? कितना कठोर अभ्यास करना पड़ा ?? क्या वह अभ्यास सुखदायी था ?? ना । सुखों को त्यागकर ही अभ्यास करना पड़ता है ।
स्वस्थ शरीर सुखमयी जीवन का आधार है । बल , निरोगता , ऊर्जा और उत्साह युक्त शरीर प्राप्ति के लिये नित्य देहाभ्यास आवश्यक है । कितने वर्षों का अभ्यास आवश्यक है ?? कैसा अभ्यास ?? क्या वह अभ्यास सुखदायी हो सकता ? ना । कई सुखों को भूलकर ही अभ्यास करना पड़ता है ।
मेस्सी जैसे खिलाड़ी को फूटबाल खेलते हुए देखना अत्यन्त हर्ष - प्रदाता है । खिलाड़ी तो लीन होकर आनन्द से खेलता है । अप्रतिम सुख का अनुभव करता । यह सुख अभ्यास का अन्तिम परिणाम है । दैनिक और नित्य अभ्यास । लम्बे काल तक अभ्यास । कई सुखों का अनदेखा कर किया हुआ कठिन अभ्यास ।
किसी उत्कृष्ट नृत्य कलाकार का भी यही अनुभव है । ऐसे अन्य कई उदाहरण दिए जा सकते हैं । ये सभी सुख अवर्णनीय सुख हैं । अमृततुल्य हैं । परन्तु आरम्भ में सुख नहीं मिलता । उलटा सुखों का त्याग करना पड़ता है । कठिन अभ्यास की आवश्यकता है । मन में कटुता जगाने वाला अभ्यास । आजकल के बच्चों की भाषा में बोर (Boring अनुभव) मन को हतोत्साहित करने वाला अनुभव । परन्तु परिणाम स्वरुप प्राप्त सुख मधुर है । अमृततुल्य है ।
इस प्रकार के सुखों को श्री कृष्ण सात्त्विक सुख कह रहे हैं ।
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