ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७८
आत्म बुद्धि प्रसादजम् .. (अध्याय १८ - श्लोक ३७)
ஆத்ம புத்தி ப்ரஸாதஜம் .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 37)
Aatma Buddhi Prasadajam .. (Chapter 18 - Shlokam 37)
अर्थ : आत्म ज्ञान में प्रकाशित बुद्धि में जन्मता है सात्त्विक सुख ।
सात्त्विकता ही आध्यात्मिक सिद्धि नहीं । आध्यात्मिक सिद्धि त्रिगुणों के पार , सात्त्विकता को भी पार करने से ही प्राप्त होती है । परन्तु , सात्त्विकता आत्मज्ञान के अत्यन्त निकट है । सात्त्विकता से आत्मानुभूति की अवस्था प्राप्त करना सुलभ है ।
सात्त्विक सुख की प्राप्ति बाहर से नहीं , संसार से नहीं । इन्द्रियोंके द्वारा प्राप्त होते नहीं । मन से भोगे नहीं जाते ।आत्म ज्ञान से प्रकाशित बुद्धि ही इस सुख का अनुभव करती है ।
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