ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २८१
ब्रह्म कर्म स्वभावजम ... (अध्याय १८ - श्लोक ४२)
ப்ரஹ்ம கர்ம ஸ்வபாவஜம் ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 42)
Brahma Karma Swabhaavajam ... (Chapter 18 - Shloka 42)
अर्थ : ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं ।
ब्राह्मण के कर्मों में ये स्वभाव प्रकट होते हैं । (१) - शमः -- शान्ति । (२) - दमः -- संयम । (३) - तपः - अविरत प्रयत्न , बाधायें जितनी भी आये , उन्हें लांघकर , आकर्षण जितने भी आये उनमें फंसे बिना प्रयत्न । (४) - शौचं -- शुचिता बाह्य और आतंरिक । (५) - क्षान्ति -- क्षमा करने की वृत्ति । (६) - आर्जवम -- सहजता , सरलता , पारदर्शिता । (७) - ज्ञानम् -- जानना । (८) - विज्ञान -- जो जाना है उसे जीवन में उतारना । (९) - आस्तिक्य -- हम से परे शक्ति के अस्तित्त्व पर गहरी श्रद्धा ।
ये वृत्तियाँ हैं । ब्राह्मण के सहज वृत्तियाँ । उसके कर्म , वाक् और चिन्तन में प्रकट होते हैं । उसके जीवन में प्रकट होते हैं ।
शमः - शान्ति , दमः - संयम , तपः आदि वृत्तियों के कारण संगीत , साहित्य , भजन , योग , वेद पठन जैसे क्षेत्रों में अविरत साधना , कई वर्षों तक चलने वाली साधना सम्भव है । कुछ व्यक्तियों के तो पूर्ण जीवन भी खप जाते हैं । सुस्वर गाने की क्षमता कइयों को प्राप्त है । परन्तु अथाह शान्ति के अभाव में वे संगीत की गहराईयों में पहुँचते नहीं । पहुँचना तो दूर , गहराई की दिशा में प्रवास के लिए भी शान्ति अत्यन्त आवश्यक है ।
शौच -- शारीरिक शुचिता , वाक् शुचिता और चिन्तन में शुचिता -- दोनों समय स्नान , आचमनीय , शुद्ध एवं पवित्र वस्त्र धारण आदि शारीरिक शुचिता हेतु , स्पष्ट उच्चार , अच्छी भाषा , अच्छे शब्दों का प्रयोग , सद्भाव युक्त वाक् आदि वाक् शुचिता के लिए और देव उपासना , वेद पारायण , सत्संग आदि चिन्तन की शुचिता के लिए ब्राह्मण द्वारा अनुष्ठित है ।
क्षान्ति -- क्षमा करने की वृत्ति -- सहन शक्ति -- बदला लेने की इच्छा , प्रतिकार करने की या प्रतुत्तर देने की इच्छा -- 'मैं कौन' यह स्थापित करने की इच्छा आदि संसारी जीवन में सर्व सामान्य हैं । ये हमें अपने जीवन की दिशा से भटका देने की क्षमता रखते हैं । हम अपना जीवन जिस विषय को लेकर चलाना चाहते हैं , उस विषय से बहक जाने की सम्भावना लाते हैं । हमारे आध्यात्मिक प्रयत्नों को बाधित कर सकते हैं । इसी लिए क्षान्ति अनिवार्य वृत्ति है । भगवत्श्रद्धा क्षान्ति को सुदृढ़ बना देती है ।
आर्जवम -- सीधापन - पारदर्शिता - जो अंदर हो वही बाहर दीखता है । छल - कपट के रहित मन । भगवन्निष्ठा इस वृत्ति को भी सशक्त करता है ।
ज्ञान -- जानने की जिज्ञासा और जानने की हेतु से प्रयत्न -- अथक प्रयत्न , ईमानदार प्रयत्न होने से ज्ञान की प्राप्ति होती है । सामान्यतः हम ऊपरी ऊपर की जानकारी प्राप्त करते और उसी में तृप्त हो जाते । ऐसा न होकर गहराई तक जानने की , अधिष्ठान को जानने की तृष्णा आवश्यक है ।
विज्ञान -- விக்ஞானம் -- जो ज्ञान प्राप्त किया है , तदनुरूप व्यवहार करना यह सत्य की तत्परता है ।
आस्तिक्य -- श्री भगवान के प्रति आस्था । हम से परे शक्ति के अस्तित्त्व पर श्रद्धा । ब्राह्मण का आधार स्तम्भ है यह । ब्राह्मण नक्सलाइट बन सकता है , अन्याय के प्रति गुस्सा के कारण । परन्तु वह नास्तिक कतई बन नहीं सकता ।
श्री कृष्ण के अनुसार ब्राह्मण के कर्मों में ये वृत्तियाँ झलकते हैं ।
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