ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २७४
धर्म कामार्थान्धृत्या धारयते प्रसङ्गेन फलाकांक्षी धृतिः सा राजसी .. (अध्याय १८ - श्लोक ३४)
தர்ம காமார்தான் த்ருத்யா தாரயதே ப்ரஸங்கேன ஃபலாகாங்க்ஷீ த்ருதி ஸா ராஜஸி .. (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 34)
Dharma Kaamaarthaan Dhrutyaa Dhaarayate Prasangena Phalaakaankshee Dhrutih saa Raajasi .. (Chapter 18 - Shlokam 34)
अर्थ : जिस धृति के कारण व्यक्ति अपने कर्म , सुख एवं धन को धरता है , राग और फलाकांक्षा के साथ , वह राजस धृति है ।
धृति यह मन की दृढ़ता है । लक्ष्य को दृढ़ता से धरती है धृति । सत्य , अहिंसा आदि मूल्यों को निष्ठा से धरती है धृति । यह सात्त्विक धृति है । धन , काम या इच्छाओं को गट्ठ पकड़कर रखने वाली भी धृति है । धन को पेटी में या बटुआ में सजाकर रख , उसे देखकर हर्षित होना , उसे पुनः पुनः गिनकर आनन्दित होना आदि धन को धरने वाली धृति के लक्षण हैं । धन से अपेक्षित सम्भाव्य फल की इच्छा और उन फलों से अपेक्षित संभाव्य सुख का आकर्षण ही धन को दृढ़ता से धरने वाली धृति का कारण है । वैसे ही काम या इच्छाओं को भी दृढ़ धरती है यह धृति । इच्छा पूर्ती से मिलने वाले सुख को भोगने की तृष्णा ही इस धृति का भी कारण है । इसी सुख भोग की इच्छा ही इसे कार्यों में तीव्रता से संलग्न कराता है । यह धृति राजसी धृति है ।
धृति यह मन की दृढ़ता है । लक्ष्य को दृढ़ता से धरती है धृति । सत्य , अहिंसा आदि मूल्यों को निष्ठा से धरती है धृति । यह सात्त्विक धृति है । धन , काम या इच्छाओं को गट्ठ पकड़कर रखने वाली भी धृति है । धन को पेटी में या बटुआ में सजाकर रख , उसे देखकर हर्षित होना , उसे पुनः पुनः गिनकर आनन्दित होना आदि धन को धरने वाली धृति के लक्षण हैं । धन से अपेक्षित सम्भाव्य फल की इच्छा और उन फलों से अपेक्षित संभाव्य सुख का आकर्षण ही धन को दृढ़ता से धरने वाली धृति का कारण है । वैसे ही काम या इच्छाओं को भी दृढ़ धरती है यह धृति । इच्छा पूर्ती से मिलने वाले सुख को भोगने की तृष्णा ही इस धृति का भी कारण है । इसी सुख भोग की इच्छा ही इसे कार्यों में तीव्रता से संलग्न कराता है । यह धृति राजसी धृति है ।
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