ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २८५
स्वभाव नियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ... (अध्याय १८ - श्लोक ४७)
ஸ்வபாவ நியதம் கர்ம குர்வன்னாப்னோதி கில்பிஷம் ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 47)
Svabhava Niyatam Karma Kurvannaapnoti Kilbisham ... (Chapter 18 - Shloka 47)
अर्थ : स्वभाव जनित कर्म से पाप का संचय होता नहीं ।
श्री कृष्ण का यह कथन अवैध कर्मों के लिए लागू होता नहीं । कोई ह्त्या , ठगाई जैसे कार्य करके , "स्वभाव के उद्वेग से कर दिया" कहकर विधान के पकड़ से बच नहीं सकता ।
श्री कृष्ण का कहना है की , "स्वधर्म के आधार पर किये जा रहे कर्म पाप नहीं बढ़ाते ।" सहज स्वभाव से प्रकट होने वाले कर्म से पाप नहीं लगता ।
पाप का अर्थ सर्व दूर एक नहीं । परिपेक्ष के अनुसार विविध परिभाषा हैं पाप के । देश , काल , व्यक्ति के अनुसार पाप की व्याख्या है । सन्न्यासी के लिए जो कर्म पाप है , गृहस्थ के लिए नहीं । ब्राह्मण के लिए जो कर्म पाप , अतः वर्जित है , क्षत्रिय का कर्तव्य हो सकता है । ब्राह्मण के लिए कठोरता से लागू शौच के नियम शूद्र को लागू नहीं । वयस्क व्यक्ति के लिए पाप माना जा रहा कर्म बच्चों के लिए पाप कर्म नहीं । हिम प्रदेश में , कड़ी सर्दी में सहज स्वीकृत कर्म अन्य प्रदेशों में पाप कर्म माना जा सकता है । अज्ञान वश किया गया कर्म भी पाप सञ्चय को बढ़ाता नहीं । श्री कृष्ण के कथन का यही तात्पर्य है ।
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