ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २८७
लघ्वाशी ... (अध्याय १८ - श्लोक ५२)
லக்வாஶீ ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 52)
Laghvaashee ... (Chapter 18 - Shloka 52)
अर्थ : अल्पाहारी ...
भोजन और अध्यात्म में कोई सम्बन्ध है ?? यदि पूँछा गया तो उत्तर हाँ में ही होगा । लघ्वाशी , मिताहारी आदि शब्द अध्यात्म वाङ्मय में प्रचलित हैं । शरीर के लिए आवश्यक सत्त्व प्रदान करना ही भोजन का प्रधान हेतु है । प्रत्येक को उसके दैनिक जीवन के शारीरिक हलचल के लिये आवश्यक ऊर्जा का स्रोत है भोजन । शरीरिक श्रम में जितनी ऊर्जा का व्यय होता है , उस अनुपात में भोजन हो यही अपेक्षा है । उससे अधिक ग्रहित भोजन चर्बी के रूप में परिवर्तित होकर शरीर में जमता है । शरीर को स्थूल बनाता है । स्थूल शरीर की क्रियाशीलता मन्द होती है । व्यक्ति में तमस को जगाता है । निद्रा की आवश्यकता को बढ़ता है । चिन्तन को भी बाधित करता है। उसी प्रकार भूख शमन के लिये भोजन न होकर रूचि के लिए , जिह्वा के मांग के लिये हो तो राजस को स्फूर्ति मिलती है । राजस और तामस व्यक्ति को संसारी विषयों से बांधते हैं। साधक को अध्यात्म से दूर करते हैं । अतः आध्यात्मिक साधक लघ्वाशी रहे यही उसके लिये हितकारी है ।
भोजन और अध्यात्म में कोई सम्बन्ध है ?? यदि पूँछा गया तो उत्तर हाँ में ही होगा । लघ्वाशी , मिताहारी आदि शब्द अध्यात्म वाङ्मय में प्रचलित हैं । शरीर के लिए आवश्यक सत्त्व प्रदान करना ही भोजन का प्रधान हेतु है । प्रत्येक को उसके दैनिक जीवन के शारीरिक हलचल के लिये आवश्यक ऊर्जा का स्रोत है भोजन । शरीरिक श्रम में जितनी ऊर्जा का व्यय होता है , उस अनुपात में भोजन हो यही अपेक्षा है । उससे अधिक ग्रहित भोजन चर्बी के रूप में परिवर्तित होकर शरीर में जमता है । शरीर को स्थूल बनाता है । स्थूल शरीर की क्रियाशीलता मन्द होती है । व्यक्ति में तमस को जगाता है । निद्रा की आवश्यकता को बढ़ता है । चिन्तन को भी बाधित करता है। उसी प्रकार भूख शमन के लिये भोजन न होकर रूचि के लिए , जिह्वा के मांग के लिये हो तो राजस को स्फूर्ति मिलती है । राजस और तामस व्यक्ति को संसारी विषयों से बांधते हैं। साधक को अध्यात्म से दूर करते हैं । अतः आध्यात्मिक साधक लघ्वाशी रहे यही उसके लिये हितकारी है ।
Comments
Post a Comment