ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २८८
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहं विमुच्य ... (अध्याय १८ - श्लोक ५३)
அஹங்காரம் பலம் தர்பம் காமம் க்ரோதம் பரிக்ரஹம் விமுச்ய ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 53)
Ahankaaram Balam Darpam Kaamam Krodham Parigraham Vimuchya ... (Chapter 18 - Shloka 53)
अर्थ : अहंकार , बल , दर्प , काम , क्रोध , परिग्रह आदि को छोड़कर ...
अहङ्कार , बल , मद (दर्प) , काम , क्रोध , परिग्रह (वस्तुएँ इकट्ठा करना) आदि वृत्तियोँ से मुक्त होने का सुझाव दे रहे हैं श्री कृष्ण । इन को छोड़ देने का सुझाव दे रहे । 'छोड़ना' या 'त्यागना' यह शब्द एक प्रश्न उठाता है । अध्यात्म साधना के परिणाम से ये वृत्तियाँ हट जाएंगी या प्रयत्न पूर्वक इन्हें हटाना सम्भव है । ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति करना हो , ब्रह्म स्थिति का अनुभव करना हो , अन्तः - शुद्धि अत्यावश्यक है । ये वृत्तियाँ अन्तः करण के दोष या मल हैं । अतः इनका हटना अनिवार्य है ।
इन्हें हटाने के प्रयत्न इन वृत्तियोँ को बढ़ा देने की सम्भावना ही अधिक है । "मैं ने इन्हें हटा दिया" ऐसा विचार बहुतेक झूठा और भ्रामक ही होता है । अहँकार के लिये पोषक होता है । ये वृत्तियाँ अति सूक्ष्म हैं । यह भी जानना अत्यंत कठिन है की ये अपने मन में घर किये हुए हैं और यहाँ बसे हुए हैं । इनको पहचान लेना और इतना भी जान लेना पर्याप्त है की हममें ये उपस्थित हैं । जागृत यजमान के नौकर काम चोरी से कतराते हैं । चोर डाकू जागृत गृहस्थ के घर से दूर ही रहता है । उसी प्रकार , प्रज्ञा जागृत साधक से ये वृत्तियाँ अपने आप ही छूट जाते हैं ।
इन्हें हटाने के प्रयत्न इन वृत्तियोँ को बढ़ा देने की सम्भावना ही अधिक है । "मैं ने इन्हें हटा दिया" ऐसा विचार बहुतेक झूठा और भ्रामक ही होता है । अहँकार के लिये पोषक होता है । ये वृत्तियाँ अति सूक्ष्म हैं । यह भी जानना अत्यंत कठिन है की ये अपने मन में घर किये हुए हैं और यहाँ बसे हुए हैं । इनको पहचान लेना और इतना भी जान लेना पर्याप्त है की हममें ये उपस्थित हैं । जागृत यजमान के नौकर काम चोरी से कतराते हैं । चोर डाकू जागृत गृहस्थ के घर से दूर ही रहता है । उसी प्रकार , प्रज्ञा जागृत साधक से ये वृत्तियाँ अपने आप ही छूट जाते हैं ।
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