ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २९०
स्वभावजेन निबद्धः ... (अध्याय १८ - श्लोक ६०)
ஸ்வபாவஜேன நிபத்தஹ ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 60)
Swabhaavajena Nibaddhah ... (Chapter 18 - Shloka 60)
अर्थ : स्वभाव से बन्धा जाकर ...
यह सत्य है की हम अपने स्वभाव से बन्धे हुए हैं । क्या हम जागृत होश के साथ , स्व चिन्तन कर , उसके आधार पर निर्णय लेकर , निर्णय के अनुसार अपने कार्यों को कर रहे हैं ?? शंका है । स्वभाव के आधार पर ही निर्णय हो रहे । अधिकांश जन तो चिन्तन भी करते नहीं । चिन्तन ना करना भी स्वभाव के ही कारण । तामसी स्वभाव ही चिन्तन को रोकता है ।
क्या स्वभाव को परिवर्तित करना सम्भव है ? बहुत कठिन । Almost असम्भव । बहुत कठोर प्रयत्न की आवश्यकता है । यह प्रयत्न भी स्वभाव पर ही निर्भर है । स्वभाव यह अभिन्न है और जन्म जात है । "अंगूठा चूसते हुए जन्मा है तो अंत में श्मशान लिया जाते समय भी अंगूठा चूसते हुए ही जाता है ।" ऐसे कहते हैं ।
क्या स्वभाव को परिवर्तित करना सम्भव है ? बहुत कठिन । Almost असम्भव । बहुत कठोर प्रयत्न की आवश्यकता है । यह प्रयत्न भी स्वभाव पर ही निर्भर है । स्वभाव यह अभिन्न है और जन्म जात है । "अंगूठा चूसते हुए जन्मा है तो अंत में श्मशान लिया जाते समय भी अंगूठा चूसते हुए ही जाता है ।" ऐसे कहते हैं ।
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