ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २८३
वैश्य कर्म स्वभावजम ... (अध्याय १८ - श्लोक ४४)
வைஶ்ய கர்ம ஸ்வபாவஜம் ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 44)
Vaishya Karma Swabhaavajam ... (Chapter 18 - Shloka 44)
अर्थ : वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं ।
श्री कृष्ण के अनुसार कृषि , गौ रक्षा और वाणिज्य वैश्य के सहज कर्म होते हैं ।
ब्राह्मण और क्षत्रिय की चर्चा करते समय श्री कृष्ण उनके स्वभाव की चर्चा करते हैं । परन्तु , यहाँ वैश्य के स्वभाव की चर्चा में स्वभाव की नहीं , कर्मों की चर्चा करते हैं । कृषि , गौ रक्षा एवं वाणिज्य को वैश्य के सहज कर्म बता रहे हैं । ये तीनों कर्म धन की वृद्धि कराने वाले कर्म हैं । एक बीज को २०० पट बढ़ाना कृषि है । गो वंश तो लक्ष्मी देवी का ही स्वरुप माना जाता है । एक गौ की वंश वृद्धि से कुछ ही वर्षों में दर्जन गाय हो जाते हैं । वाणिज्य या व्यापार तो धन की वृद्धि ही कराता है । श्री कृष्ण इन तीन कर्मों को वैश्य के सहज कर्म कहते हैं ।
धन सम्पदा की वृद्धि करना ही वैश्य का धर्म है । वैश्य के सभी कर्म सहज इसी वृत्ति को दर्शाने वाले होते हैं ।
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