ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ३००
केशवार्जुनयोः पुण्यं संवादम इमम् अद्भुतम् । (अध्याय १८ - श्लोक ७६)
கேஶவார்ஜுனயோஹ புண்யம் ஸம்வாதம் இமம் அத்புதம் ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 76)
Keshavaarjunayoh punyam Samvaadam Imam Adbhutam ... (Chapter 18 - Shloka 76)
अर्थ : केशवार्जुन का वह पुण्य मयी , अद्भुत संवाद ।
यह वचन धृतराष्ट्र के सारथी सञ्जय के हैं । सञ्जय आनन्द मग्न है । हर्षित अवस्था में है । उत्साह में उछल कूद रहा है । स्वयं का होश खोया हुआ जैसे है । सञ्जय जो एक साधारण सारथी है , महाराज धृतराष्ट्र से प्राप्त वेतन पर जीने वाला एक नौकर है , स्वयं को प्राप्त सौभाग्य का पुनः पुनः स्मरण कर आल्हादित हो रहा है । जैसे धान के खेत में फसल के लिये बहती पानी , वहाँ उगे घास के लिये भी प्राप्त हो जाती है , वैसे ही उसे वह दिव्य संवाद सुनने का भाग्य मिला जो श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ । उस अमृत तुल्य संवाद का श्रवण करने के भाग्य को पुनः पुनः स्मरण कर हर्षित हो रहा है ।
सञ्जय का मन स्वच्छ निर्मल है । वह महात्मा है । इसी कारण यह संवाद उसे दैवी और पुण्यमयी लगा । सञ्जय तो मोह और संशय ग्रस्त धृतराष्ट्र , षडयंत्र रचाने वाला धूर्त दुर्योधन और दुर्बुद्धि युक्त उसके सहयोगियों के बीच रहा । फिर भी उसने अपने मन को बिगड़ने नहीं दिया । मन की निर्मलता को संभाल रखा । यह उसके सात्त्विकता के लक्षण है । धर्मात्मा सञ्जय !!!
सञ्जय का मन स्वच्छ निर्मल है । वह महात्मा है । इसी कारण यह संवाद उसे दैवी और पुण्यमयी लगा । सञ्जय तो मोह और संशय ग्रस्त धृतराष्ट्र , षडयंत्र रचाने वाला धूर्त दुर्योधन और दुर्बुद्धि युक्त उसके सहयोगियों के बीच रहा । फिर भी उसने अपने मन को बिगड़ने नहीं दिया । मन की निर्मलता को संभाल रखा । यह उसके सात्त्विकता के लक्षण है । धर्मात्मा सञ्जय !!!
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