ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २९७
ज्ञान यज्ञेन तेनाहं इष्टः स्याम ... (अध्याय १८ - श्लोक ७०)
க்ஞான யக்ஞேன தேனாஹம் இஷ்டஹ் ஸ்யாம் ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 70)
Gyaana Yagyena Tenaaham Ishtah Syaam ... (Chapter 18 - Shloka 70)
अर्थ : ज्ञान यज्ञ से मेरी उपासना ही करता है ।
गत श्लोक में अपने परम इष्ट कार्य को सूचित किया श्री कृष्ण ने । कहे , "गीता का अध्ययन एवं मेरे भक्तों के संग गीता की चर्चा - ये ही मेरे लिये अत्यन्त प्रिय कार्य हैं ।" इस श्लोक में इन कार्यों को ज्ञान यज्ञ कहते हुए इन्हें करने वाले को अपना अत्यन्त प्रिय बता रहे हैं ।
यज्ञ में देना या त्याग करना ही तात्पर्य है । द्रव्य यज्ञ में देवों के लिये द्रव्य दिए जाते हैं । अग्नि में आहुति किए जाते हैं । भक्तों के संग जब गीता कही जाती है , ज्ञान ही द्रव्य हो जाता है । और गीता सिखाना यज्ञ । भक्तों में ज्ञान बांटा जाता है । भक्तों के अन्तरंग में ज्ञान रुपी प्रकाश जगाया जाता है । इसी लिए श्री कृष्ण इस कार्य को ज्ञान यज्ञ कह रहे हैं । श्री कृष्ण , "इस प्रकार ज्ञान यज्ञ में मग्न है , उसे अपना परम इष्ट" कह रहे हैं ।
यज्ञ में देना या त्याग करना ही तात्पर्य है । द्रव्य यज्ञ में देवों के लिये द्रव्य दिए जाते हैं । अग्नि में आहुति किए जाते हैं । भक्तों के संग जब गीता कही जाती है , ज्ञान ही द्रव्य हो जाता है । और गीता सिखाना यज्ञ । भक्तों में ज्ञान बांटा जाता है । भक्तों के अन्तरंग में ज्ञान रुपी प्रकाश जगाया जाता है । इसी लिए श्री कृष्ण इस कार्य को ज्ञान यज्ञ कह रहे हैं । श्री कृष्ण , "इस प्रकार ज्ञान यज्ञ में मग्न है , उसे अपना परम इष्ट" कह रहे हैं ।
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