ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - ३०२
यत्र योगेश्वरः कृष्णः यत्र पार्थः धनुर्धरः ... (अध्याय १८ - श्लोक ७८)
யத்ர யோகேஶ்வரஹ க்ருஷ்ணஹ யத்ர பார்தஹ தனுர்தரஹ ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 78)
Yatra Yogeshwarah Krishnah Yatra Parthah Dhanurdharo ... (Chapter 18 - Shloka 78)
अर्थ : जहाँ योगेश्वर श्री कृष्ण हो , जहाँ उनके साथ धनुर्धारी अर्जुन हो ...
अंधा राजा धृतराष्ट्र का सारथी सञ्जय की यह घोषणा है । गीता , इस अमृततुल्य संवाद का श्रवण भाग्य उसे प्राप्त था । श्री परमात्मा का विश्वरूप का दर्शन भाग्य उसे प्राप्त था । महात्मा सञ्जय स्वयं के भाग्य को पुनः पुनः स्मृति पटल पर ला रहा और हर्षित हो रहा । विस्मय स्थिति को पहुँच रहा । उस अवस्था में सञ्जय द्वारा की गयी घोषणा है यह ।
"हे धृतराष्ट्र !! सत्य को देखने में अक्षम अन्धे !! तुम्हारी अपेक्षा और आशा के अनुरूप घड़ने वाला नहीं । तुम्हारी पुत्रों को यश प्राप्त होने वाला नहीं । यश तो योगेश्वर श्री कृष्ण और धनुर्धारी अर्जुन यह संयुक्त जोड़ी जहाँ है वहीं प्राप्त होगा । ना केवल विजय , कीर्ति , श्री और ध्रुव नीति भी वहीं हो सकते हैं ।" यही है भाव विभोर अवस्था में सञ्जय द्वारा की गयी घोषणा ।
हम में निश्चित मत हो । विचार हो । और उस मत को क्रियान्वित करने की सक्षम योजना और दृढ़ निश्चय हो । ये दोनों हो तो यश है । हिन्दू धर्म के विचार उदात्त है । पूर्ण विश्व के हित में है । परन्तु हिन्दू समाज गत कई शताब्दियों से मार खाते आ रहा है । साधारण समाज के अलप विचार वाले इस महान हिन्दू समाज को अपने आधीन किया और इस हिन्दू समाज को उत्पीड़न दिया और हिन्दू देश का शोषण किया । केवल विचार पर्याप्त नहीं । जब जब इस समाज में अर्जुन के सामान धनुर्धारी , सक्षम , दृढ़ व्यक्ति उभर कर आये और इस विचार के साथ स्वयं को जोड़ कर प्रयत्न किया , तब तब उसी हिन्दू समाज को गौरवमय स्थापित किया । श्री छत्रपति शिवाजी , श्री गुरु गोबिंद सिंह , श्री नेताजी और समीप काल में श्री नरेन्द्र मोदी । ये भव्य उदाहरण हैं । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद साठ , सत्तर वर्षों तक भारत की दयनीय अवस्था रही । सभी नैसर्गिक संसाधन और उच्च स्तर का मानवी संसाधन रहते हुए भी , विश्व मंच पर भारत का योग्य स्थान नहीं था । कारण ?? हम ने स्वयं का विचार छोड़कर संसार में प्रचलित कम्यूनिजम , अमेरिकी भोगवाद आदि अधूरे विचारों का आलिंगन किया । उनके आधार पर राज्य शासन करने का प्रयत्न किया । श्री नरेन्द्र मोदी पुनः हिन्दुत्त्व को लेकर चले और स्वयं उनको और भारत को विश्व में गौरव की पुनः - प्राप्ति हो रही ।
"हे धृतराष्ट्र !! सत्य को देखने में अक्षम अन्धे !! तुम्हारी अपेक्षा और आशा के अनुरूप घड़ने वाला नहीं । तुम्हारी पुत्रों को यश प्राप्त होने वाला नहीं । यश तो योगेश्वर श्री कृष्ण और धनुर्धारी अर्जुन यह संयुक्त जोड़ी जहाँ है वहीं प्राप्त होगा । ना केवल विजय , कीर्ति , श्री और ध्रुव नीति भी वहीं हो सकते हैं ।" यही है भाव विभोर अवस्था में सञ्जय द्वारा की गयी घोषणा ।
हम में निश्चित मत हो । विचार हो । और उस मत को क्रियान्वित करने की सक्षम योजना और दृढ़ निश्चय हो । ये दोनों हो तो यश है । हिन्दू धर्म के विचार उदात्त है । पूर्ण विश्व के हित में है । परन्तु हिन्दू समाज गत कई शताब्दियों से मार खाते आ रहा है । साधारण समाज के अलप विचार वाले इस महान हिन्दू समाज को अपने आधीन किया और इस हिन्दू समाज को उत्पीड़न दिया और हिन्दू देश का शोषण किया । केवल विचार पर्याप्त नहीं । जब जब इस समाज में अर्जुन के सामान धनुर्धारी , सक्षम , दृढ़ व्यक्ति उभर कर आये और इस विचार के साथ स्वयं को जोड़ कर प्रयत्न किया , तब तब उसी हिन्दू समाज को गौरवमय स्थापित किया । श्री छत्रपति शिवाजी , श्री गुरु गोबिंद सिंह , श्री नेताजी और समीप काल में श्री नरेन्द्र मोदी । ये भव्य उदाहरण हैं । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद साठ , सत्तर वर्षों तक भारत की दयनीय अवस्था रही । सभी नैसर्गिक संसाधन और उच्च स्तर का मानवी संसाधन रहते हुए भी , विश्व मंच पर भारत का योग्य स्थान नहीं था । कारण ?? हम ने स्वयं का विचार छोड़कर संसार में प्रचलित कम्यूनिजम , अमेरिकी भोगवाद आदि अधूरे विचारों का आलिंगन किया । उनके आधार पर राज्य शासन करने का प्रयत्न किया । श्री नरेन्द्र मोदी पुनः हिन्दुत्त्व को लेकर चले और स्वयं उनको और भारत को विश्व में गौरव की पुनः - प्राप्ति हो रही ।
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