ॐ
गीता की कुछ शब्दावली - २९४
सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज ... (अध्याय १८ - श्लोक ६६)
ஸ்ர்வ தர்மான் பரித்யஜ்ய மாமேகம் ஶரணம் வ்ரஜ ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 66)
Sarva Dharmaan Parityajya Maamekam Sharanam Vraja ... (Chapter 18 - Shloka 66)अर्थ : अन्य सभी धर्मों का त्याग कर , मुझ एक को ही शरण होना ...
यह श्लोक गीता का चरम श्लोक है । गीता का भव्य समापन ।
इस शब्दावली के दो भाग हैं । सर्व धर्मान् परित्यज्य यह एक भाग । मामेकम् व्रज यह दूसरा भाग । अपने स्वयं के लिये कुछ भी ना रखते हुए , स्वयं के लिये कुछ भी बचाकर ना रखना , स्वयं की योजना , आकांक्षा , लक्ष्य , कर्तव्य आदि कुछ भी ना रखते हुए , सब कुछ छोड़कर ... यह प्रथम भाग है । अन्य रास्ते न ढूंढते हुए , अन्य विकल्प न रखते हुए , अन्य शक्तियों से याचना न करते हुए , केवल परम शक्ति के ही शरण जाना यह दूसरा भाग ।
स्वयं का कुछ बचाकर रखने से शरणागति पूर्ण होती नहीं । द्रौपदी अपने हाथ से साडी को पकड़कर , आत्म रक्षण के प्रयास करते हुए श्री कृष्ण को पुकार रही थी तो श्री कृष्ण आये नहीं । और जैसे ही उसने दोनों हाथ ऊपर उठा दिया , आत्म रक्षण का प्रयास छोड़ दिया , तत्क्षण श्री कृष्ण उसके सहायता के लिए पहुँच गये ।
दुर्योधन की सेना में सभी नेता अपनी सेना का विजय से अपने स्व - संकल्प , अपनी स्व - कीर्ति , अपनी प्रतिज्ञा , अपनी निजी भावनाएं , अपने परिवार इन्हें ही अधिक महत्त्वपूर्ण समझा । शिखंडी के विषय में अपना मत यह भीष्म के लिये बड़ा महत्त्वपूर्ण रहा । उसके विरुद्ध युद्ध नहीं करने का अपना हठ छोड़ नहीं सके ।
कर्ण के लिए अपना नाम , महादानी होने की कीर्ति यही मुख्य रहा । भीष्म के प्रति ईर्ष्या और द्वेष ही प्रधान भावना रही । जब तक भीष्म युद्ध क्षेत्र पर थे , तब तक वह अपने परम मित्र दुर्योधन के विजय के लिये भी युद्ध क्षेत्र पर आने से मना कर दिया । अपने कवच - कुण्डल का दान करने से अपना मृत्यु और अपनी सेना का पराजय निश्चित है यह जानते हुए भी स्व कीर्ति भंग होने से बचाने , कवच कुण्डल का दान दिया ।
द्रोण के लिये पुत्र मोह सर्वोपरि था । युद्ध में अर्जुन का पुत्र मरा । भीम का भी पुत्र भी मरा । क्यूँ ?? दुर्योधन का पुत्र भी तो मारा गया । परन्तु पुत्र मारा गया ऐसा सुनने मात्र से द्रोण हताश हो गये और युद्ध से हट गये ।और मारे गये ।
पाण्डव सेना में सभी श्री कृष्ण के आधीन थे । उनको शरण गये थे । सत्य वचनी श्री युधिष्ठिर असत्य बोलने को तैयार हुए । निःशस्त्र प्रतिद्वंद्वी को नहीं मारने का संकल्प जिस अर्जुन ने लिया था , वह शस्त्र को त्यागकर रथ के चक्र को दलदल से निकालने के प्रयत्न में लगे कारण को मारा । गदा युद्ध में कमर के अधो भाग प्रहार न करने का संकल्प लिए हुए भीम दुर्योधन के जांघ पर वार किया और उसका वध किया । वे तो शरणागत थे और केवल श्री कृष्ण के सुझाव का अक्षरशः पालन कर रहे थे ।
मामेकम् शरणम् व्रज । मुझे , केवल मुझे शरण हो जा । पूर्ण श्रद्धा के साथ । परम शक्ति के सामने शरण जाए । मनुष्य शक्ति (विश्वामित्र) के शरण गये राजा त्रिशंकु । सशरीर स्वर्ग पहुँच नहीं सके । ऊपर से ना भूमि पर ना स्वर्ग में रहकर अंतरिक्ष में उलटा लटके रहे और अपमानित हुए । देवेंद्र इंद्र के शरण में गया सर्प राजा तक्षक । स्वयं की तो रक्षण कर नहीं सका । ऊपर से इंद्र को आपत्त में फंसा दिया । किसी अन्य शक्ति को नहीं , केवल परम शक्ति का शरण जाय ।
सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकम् शरणम् व्रज ।
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