ॐ गीता की कुछ शब्दावली - २९४ सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज ... (अध्याय १८ - श्लोक ६६) ஸ்ர்வ தர்மான் பரித்யஜ்ய மாமேகம் ஶரணம் வ்ரஜ ... (அத்யாயம் 18 - ஶ்லோகம் 66) Sarva Dharmaan Parityajya Maamekam Sharanam Vraja ... (Chapter 18 - Shloka 66) अर्थ : अन्य सभी धर्मों का त्याग कर , मुझ एक को ही शरण होना ... यह श्लोक गीता का चरम श्लोक है । गीता का भव्य समापन । इस शब्दावली के दो भाग हैं । सर्व धर्मान् परित्यज्य यह एक भाग । मामेकम् व्रज यह दूसरा भाग । अपने स्वयं के लिये कुछ भी ना रखते हुए , स्वयं के लिये कुछ भी बचाकर ना रखना , स्वयं की योजना , आकांक्षा , लक्ष्य , कर्तव्य आदि कुछ भी ना रखते हुए , सब कुछ छोड़कर ... यह प्रथम भाग है । अन्य रास्ते न ढूंढते हुए , अन्य विकल्प न रखते हुए , अन्य शक्तियों से याचना न करते हुए , केवल परम शक्ति के ही शरण जाना यह दूसरा भाग । स्वयं का कुछ बचाकर रखने से शरणागति पूर्ण होती नहीं । द्रौपदी अपने हाथ से साडी को पकड़कर , आत्म रक्षण के ...